बता दें कि जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर फालैन गांव को प्रहलाद का गांव भी कहा जाता है। यहां हर साल भक्त प्रहलाद की लीला की जाती है। होली पर एक पंडा धधकते हुए अंगारों पर चलता है और सकुशल बाहर आ जाता है। इस साल ये हैरतअंगेज कारनामा मोनू पंडा करेंगे। जो भी इस प्रथा को करता है, उसे एक माह तक प्रहलादजी की माला धारण करके कठिन तप करना होता है और नियमित रूप से एक माह तक पूजा-अर्चना करनी होती है। इस दौरान वो पंडा घर नहीं जाता। जमीन पर विश्राम करता है व पूरे माह व्रत रखता है ताकि खुद को इस अग्निपरीक्षा के काबिल बना सके।
इस प्रथा के पीछे एक कहानी प्रचलित है। कहा जाता है कि गांव के निकट ही साधु तप कर रहे थे। उन्हें स्वप्न में डूगर के पेड़ के नीचे एक मूर्ति दबी होने की बात बताई। इस पर गांव के कौशिक परिवारों ने खोदाई कराई। जिसमें भगवान नृसिंह और भक्त प्रहलाद की प्रतिमाएं निकलीं। प्रसन्न होकर तपस्वी साधु ने आशीर्वाद दिया कि इस परिवार का जो व्यक्ति शुद्ध मन से पूजा करके धधकती होली की आग से गुजरेगा, उसके शरीर में स्वयं प्रहलादजी विराजमान हो जाएंगे। आग की ऊष्मा का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके बाद यहां प्रहलाद मंदिर बनवाया गया।