भरि होरी के बीच सजन समध्याने धायौ ॥
पाँड़े जू के पायनि कों हँसि शीश नवायौ ।
अति उदार वृषभानु राय सन्मान करायौ ॥
पाँय धुवाय अन्हवाई प्रथम भोजन करवायौ ।
भानु भवन भई भीर फाग कौ खेल मचायौ ॥
समध्याने की गारी सुनत श्रवण सुख पायौ ।
धाई आई और सखी जिनि सोंधो नायौ ॥
शीशी सर ते ढोरी फुलेल अंग झलकायौ ।
हनुमान की प्रतिमा मानौ तेल चढायौ ॥
काजर सों मुख माढ़यौ वन्दन बिन्दु बनायौ ।
कारे कर सहि चुवत मनौं चपरा चपकायौ ॥
गज गामिनि गौछनि में तकि तुकमा लपटायौ ।
देह धरें मानों फागुन ब्रज में खेलन आयौ ॥
माथे तें मोहनी मठा कौ माट ढ़ुरायौ ।
मानों काचे दूध श्याम गिरवरहि न्हवायौ ॥
लियौ लुगाइनि घेरि नरें नाना के आयौ ।
तब श्री राधा राधा कहि अपनौ बोल सुनायौ ॥
चंचल चन्द्र मुखीनि चहुँ धां तें जू दबायौ ।
अहो भानु की कुँवरी शरण हौं तेरी आयौ ॥
कोमल बानी सुनत गरौ राधा भरि आयौ ।
बाबा जू कौ दगल लली जू लै पहिरायौ ॥
कीरति पाँय लागि लागि तातौ पय प्यायौ ।
मनवांछित निधि दीनी तन तें ताप नसायौ ॥