यहां होती है पूजा पूरे देश में दशहरा पर बुराई के प्रतीक रावण के पुतले को जलाया जाता है लेकिन मथुरा में रावण भक्त मण्डल के सदस्य न केवल रावण की पूजा करते हैं बल्कि उसके पुतला दहन का विरोध भी करते हैं। हर बार की तरह इस बार भी मथुरा में यमुना किनारे सारस्वत ब्राह्मण समाज के लोगों ने रावण भक्त मण्डल के बैनर तले रावण का पूजन किया। रावण के भक्तों का मानना है कि रावण भगवान् महादेव के परम भक्त थे और वह त्रिकालदर्शी भी थे, इसीलिए वह उनका पूजन करते हैं। इस पूजन में सारस्वत समाज के दर्जनों बच्चे और बड़े भाग लेते हैं। रावण की पूजा करने वाले ओमवीर सारस्वत ने बताया कि भगवान शिव की पूजा करने वाले महाराज दशानंद के स्वरूप को हम नमन करते हैं। प्रचंड विद्वान होने के नाते हम सबका धर्म है हम इस तरह से पुतला दहन न करें, हम इसका विरोध करते हैं। माता सीता ने अशोक वाटिका में रहकर भगवान राम के हाथों शुद्ध कराया था। जिस तरह से एक विद्वान को हर वर्ष जलाया जाता है और उसको बेइज्जत किया जाता है यह समाज के लिए घातक है। रावण के पास बहुत ही अद्भुत शक्तियां थीं। हमारे समाज में महाराज रावण के खिलाफ भ्रांतियां पैदा हो गई हैं। हम रावण के पुतला दहन करने का विरोध करते हैं और हम अदालत से भी अनुरोध करेंगे कि इस पर रोक लगाई जाए।
रावण के विरुद्ध चलने वाले राम भक्त नहीं रावण की पूजा में शामिल हुए संजय सारस्वत ने बताया कि आज हमने भगवान शिव की पूजा के साथ-साथ रावण की भी पूजा की है। भगवान राम की मनसा कभी भी नहीं रही कि रावण का पुतला दहन हो और बेइज्जती हो। रावण के वध के बाद भी भगवान राम ने लंकेश के पार्थिव शरीर को उनके अनुज विभीषण को सौंपा और उसकी विधि विधान से अन्त्येष्टि की। जो लोग भगवान राम की मनसा के विरुद्ध चल रहे हैं वह लोग राम भक्त नहीं हो सकते।
छह भाई और दो बहन थीं वहीं रावण का स्वरूप बनने वाले कुलदीप का कहना है कि सभी जगह रावण का पुतला दहन किया जाता है लेकिन यहां उसकी पूजा होती है। रावण के छह भाई और दो बहन थीं। जिसमें रावण की बहन कुम्भनी मथुरा के राजा मधु राक्षस की पत्नी और लवणासुर की मां थी। इसके साथ ही रावण सारस्वत समाज से थे यही वजह है कि यहां सारस्वत ब्राह्मण समाज के लोग रावण की पूजा करते हैं।