यह भी पढ़ें सम्मान निधिः किसान कार्यालयों के चक्कर न लगायें, जनसुविधा केन्द्र पर रजिस्ट्रेन कराएं
निंदा और वाद-विवाद से दूर रहें
जयगुरुदेव मन्दिर पर चल रहे पाँच दिवसीय वार्षिक भण्डारा सत्संग-मेला के दूसरे दिन संस्था के राष्ट्रीय उपदेशक बाबूराम और सतीश चन्द ने महापुरुषों के सत्संग में रहने, शाकाहार-सदाचार अपनाने और अच्छे समाज के निर्माण आदि विषयों पर प्रेरणादायक सत्संग सुनाये। उपेशक बाबूराम ने कहा कि हम लोगों को अपनी बांह गुरु के हाथों में पकड़ा कर चिन्तामुक्त हो जाना चाहिये। गुरु की मौज में रहने पर जीव का कल्याण हो जाता है। निन्दा और वाद विवाद से प्रेमियों को हमेशा बचना चाहिये। निन्दा, आलोचना परमार्थ की कमाई को खत्म कर देता है। इस अवसर पर लोगों को संकल्प लेना चाहिये कि इन बातों से बचेंगे और अपने आत्मकल्याण के बारे में हमेशा चिन्तन करेंगे।
निंदा और वाद-विवाद से दूर रहें
जयगुरुदेव मन्दिर पर चल रहे पाँच दिवसीय वार्षिक भण्डारा सत्संग-मेला के दूसरे दिन संस्था के राष्ट्रीय उपदेशक बाबूराम और सतीश चन्द ने महापुरुषों के सत्संग में रहने, शाकाहार-सदाचार अपनाने और अच्छे समाज के निर्माण आदि विषयों पर प्रेरणादायक सत्संग सुनाये। उपेशक बाबूराम ने कहा कि हम लोगों को अपनी बांह गुरु के हाथों में पकड़ा कर चिन्तामुक्त हो जाना चाहिये। गुरु की मौज में रहने पर जीव का कल्याण हो जाता है। निन्दा और वाद विवाद से प्रेमियों को हमेशा बचना चाहिये। निन्दा, आलोचना परमार्थ की कमाई को खत्म कर देता है। इस अवसर पर लोगों को संकल्प लेना चाहिये कि इन बातों से बचेंगे और अपने आत्मकल्याण के बारे में हमेशा चिन्तन करेंगे।
यह भी पढ़ें महिलाओं के प्रति अपराधों को रोकने के लिए जागरूकता की जरूरतः मौर्य
भाग्यशाली हैं हम उपदेशक सतीश चन्द ने महापुरुषों के वचन ‘सत्संग महिमा है अतिभारी, पर कोई जीव मिले अधिकारी’’ को उद्धृत करते हुये कहा कि हम लोग बड़े भाग्यशाली हैं कि बाबा जयगुरुदेव जी महाराज जैसे महापुरुष मिले और उनका सत्संग सुन सुन कर बहुत कुछ जानकारी हुई है। जब घण्टे, शंख की आवाज सुनाई देने लगे तब अपने को कुछ ज्ञानी मानना। किसी बात का अहंकार नहीं करना चाहिये। बराबर सत्संग में आते-जाते रहने की जरूरत है। मन की निगरानी बराबर करते रहना चाहिये। क्योंकि मन काल माया का एजेण्ट है। कभी भी साधना से गिरा देगा।
भाग्यशाली हैं हम उपदेशक सतीश चन्द ने महापुरुषों के वचन ‘सत्संग महिमा है अतिभारी, पर कोई जीव मिले अधिकारी’’ को उद्धृत करते हुये कहा कि हम लोग बड़े भाग्यशाली हैं कि बाबा जयगुरुदेव जी महाराज जैसे महापुरुष मिले और उनका सत्संग सुन सुन कर बहुत कुछ जानकारी हुई है। जब घण्टे, शंख की आवाज सुनाई देने लगे तब अपने को कुछ ज्ञानी मानना। किसी बात का अहंकार नहीं करना चाहिये। बराबर सत्संग में आते-जाते रहने की जरूरत है। मन की निगरानी बराबर करते रहना चाहिये। क्योंकि मन काल माया का एजेण्ट है। कभी भी साधना से गिरा देगा।