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गुंडों की पिटाई से शाहिद की मौत, पुलिस पैसे वसूलती रही

locationमथुराPublished: Jan 25, 2019 08:19:34 am

-एसएसपी के यहां पहुंचे परिजन तो सात लोगों के खिलाफ हत्या का केस दर्ज किया
-दरोगा ने कहा- मैं पीछे पड़ा रहा लेकिन तहरीर नहीं दी, अब जबरन लिखवाकर लिया

police public

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मथुरा। पीड़ित मर गया और पुलिस अपनी मनमानी करती रही। हद तो तब हो गई जब पीडित परिवार को मृतक शाहिद का शव हासिल करने के लिए भी पुलिस के सामने गिड़गिड़ाना पड़ा।

22 जनवरी की घटना
22 जनवरी को सुरीर के गांव लक्ष्मनपुरा में दबांगों द्वारा की गई मारपीट में घायल हुए 35 वर्षीय शाहिद पुत्र अली शेख ने आगरा में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। शाहिद की मौत के बाद आगरा के अस्पताल ने पुलिस केस बाताते हुए शव देने से इनकार कर दिया। पुलिस को शव सुपुर्द करने की बात कही। इसके बाद पीड़ित परिजन फिर सुरीर पुलिस के सामने गिड़गिड़ाये। इस बीच कई दर्जन ग्रामीण एसएसपी कार्यालय पहुंच गये। इसके बाद सुरीर पुलिस सक्रिय हुई और आगरा से शाहिद का शव पुलिस ने कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा।
पुलिस ने शव नहीं दिया, वसूली की

गुरुवार को एसएसपी कार्यालय पहुंचे मृतक के भाई भूरा ने आरोप लगाया कि पुलिस ने हमारी कोई मदद नहीं की। हमारी रिपोर्ट भी दर्ज नहीं की। तीन लोगों को पुलिस ने रात में उठाया और 60 हजार रूपये लेकर एक को छोड दिया। आरोप यह भी लगाया कि एक लाख रुपये में दो ओर लोगों को पुलिस छोड़ने जा रही थी। इसी बीच उनके भाई की मौत की खबर मिल गई और पुलिस ने छोड़े गये व्यक्ति को भी पकड़ लिया। इससे पहले पुलिस ने उनकी कोई सुनने वाला नहीं था। पुलिस उन्हें टरकाती रही।
रास्ते को लेकर की थी दंपति की पिटाई

मृतक का घर गांव के रास्ते में सबसे अलग है, उसके घर को जाने के लिए एक ही छोटा सा रास्ता मिला हुआ है। इस रास्ते पर कुछ लोग अपना गोबर डाल रहे थे। रास्ता रोक दिया गया। इसी बात को लेकर शाहिद और उसकी पत्नी को जमकर पीटा गया, जिसमें शाहिद की मौत हो गई।
प्राइवेट इलाज की कहकर वापस लौटाया

पीड़ित परिवार का कहना है कि पुलिस ने उन्हें मेडिकल का भी मौका नहीं दिया। सुरीर पुलिस ने प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने की कह कर वापस लौटा दिया। पहले छाता, फिर वृंदावन और अंत में आगरा में इलाज कराया।
एसओ बोले- मैं पीछे पड़ा रहा लेकिन तहरीर नहीं दी

थाना इंचार्ज सुरीर ने बताया कि 22 जनवरी को झगड़ा हो गया था। मैं इन लोगों के पीछे झगडे के दिन से ही पडडा था, जो भी बात होगी तरमीम हो जाएगी, तहरीर दे दो, दो दरोगा भी लगे रहे, लिखकर ही नहीं दिया। अधिकारी भी नाराज हो रहे थे कि तहरीर नहीं ले पा रहे हो, जब वह मर गया तब मैंने जबरर्दस्ती तहरीर ली है। सात लोगों के नाम हैं और 302, 307 में सीधा मुकदमा लिखा गया है। मैंने पीछे पड़ कर मुकदमा दर्ज कराया है और ये कप्तान साहब के यहां पहुंच गये।
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