श्रावण माह के प्रत्येक मंगलवार को सुबह उठकर स्नान आदि कर नए वस्त्र पहनें। चौकी पर आधे हिस्से में सफेद कपड़ा बिछाएं और आधे हिस्से में लाल। सफेद वाले हिस्से में चावल के नौ छोटे ढेर बनाएं और लाल हिस्से में गेहूं के सोलह ढेर बनाएं। इसके बाद चौकी पर अलग स्थान पर थोड़े से चावल बिछाकर पान का पत्ता रखें। पान पर स्वास्तिक बनाएं और गणपति बप्पा की प्रतिमा रखें। इसके बाद गणपति जी की और चावल के नौ ढेर जिसे नवग्रह माना जाता है, उनका रोली, चावल, पुष्प, धूप आदि से विधिवत पूजन करें।
मंगला गौरी कथा के अनुसार एक गांव में बहुत धनी व्यापारी रहता था कई वर्ष बीत जाने के बाद भी उसका कोई पुत्र नहीं हुआ। कई मन्नतों के पश्चात बड़े भाग्य से उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। परंतु उस बच्चे को श्राप था कि 16 वर्ष की आयु में सर्प काटने के कारण उसी मृत्यु हो जाएगी। संयोगवश व्यापारी के पुत्र का विवाह सोलह वर्ष से पूर्व मंगला गौरी का व्रत रखने वाली स्त्री की पुत्री से हुआ। व्रत के फल स्वरूप उस महिला की पुत्री के जीवन में कभी वैधव्य दुख नहीं आ सकता था। उससे विवाह होने के बाद व्यापारी के पुत्र पर से अकाल मृत्यु का साया हट गया तथा उसे दीर्घायु प्राप्त हुई।