इसी स्थान पर श्रीकृष्ण ने यशोदा मां को कराए थे ब्रह्मांड दर्शन
कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहां बचपन में कान्हा ने मिट्टी खाकर यशोदा मां को अपने मुंह में ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे। इस स्थान पर कन्हैया का ब्रह्मांड बिहारी के नाम से मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में आज भी उन्हें मिट्टी के पेड़े का भोग लगाया जाता है। मंदिर के पुजारी पवन ने बताया कि भोग लगाने के बाद इसे प्रसाद के रूप में लोगों को वितरित किया जाता है और भक्त इन्हें बड़े चाव से खाते हैं। मान्यता है कि यदि कोई बच्चा मिट्टी खाता है और उसे ये पेड़ा खिला दिया जाए तो वो मिट्टी खाना छोड़ देता है।
कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहां बचपन में कान्हा ने मिट्टी खाकर यशोदा मां को अपने मुंह में ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे। इस स्थान पर कन्हैया का ब्रह्मांड बिहारी के नाम से मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में आज भी उन्हें मिट्टी के पेड़े का भोग लगाया जाता है। मंदिर के पुजारी पवन ने बताया कि भोग लगाने के बाद इसे प्रसाद के रूप में लोगों को वितरित किया जाता है और भक्त इन्हें बड़े चाव से खाते हैं। मान्यता है कि यदि कोई बच्चा मिट्टी खाता है और उसे ये पेड़ा खिला दिया जाए तो वो मिट्टी खाना छोड़ देता है।
यमुनाघाट की मिट्टी से बनते पेड़े
इन पेड़ों को बनाने के लिए बरसात के मौसम में यमुनाघाट से मिट्टी निकलवाई जाती है। उसे सुखाया जाता है फिर कूटा और छाना जाता है। इसके बाद मिट्टी के पेड़े तैयार किए जाते हैं।
इन पेड़ों को बनाने के लिए बरसात के मौसम में यमुनाघाट से मिट्टी निकलवाई जाती है। उसे सुखाया जाता है फिर कूटा और छाना जाता है। इसके बाद मिट्टी के पेड़े तैयार किए जाते हैं।
रोजाना बिक जाते हैं सैकड़ों पेड़े
पुजारी ने बताया कि यहां रोजाना करीब हजार से दो हजार श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और रोजाना सैकड़ों पेड़ों की बिक्री होती है। इन पेड़ों को देसी—विदेशी सभी भक्त स्वाद लेकर खाते हैं। पेड़ो की बिक्री से हुई आय को गौ सेवा और बिहारी जी की सेवा में लगाया जाता है।
पुजारी ने बताया कि यहां रोजाना करीब हजार से दो हजार श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और रोजाना सैकड़ों पेड़ों की बिक्री होती है। इन पेड़ों को देसी—विदेशी सभी भक्त स्वाद लेकर खाते हैं। पेड़ो की बिक्री से हुई आय को गौ सेवा और बिहारी जी की सेवा में लगाया जाता है।