बता दें कि रासायनिक अभिक्रिया करके मृदा की लवणीयता, क्षारीयता एवं अम्लीयता आदि की जांच करना मृदा परीक्षण कहलाता है। मृदा परीक्षण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2015 में राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के सूरतगढ़ से राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य कार्ड (एनएसएचसी) योजना की शुरुआत की थी।
बता दें कि मऊ जनपद के किसानों के खेतों में उर्वरक तत्वों की कमी के वजह से पैदावार ज्यादा नहीं तो पाती थी, जबकि किसानों द्वारा यूरिया और डीएपी का बखूबी प्रयोग किया जा रहा था। इसी को ध्यान में रखते हुए कृषि विभाग किसानों के खेतों से मिट्टी के नमूने लेकर उनकी जांच कर रहा था।
जनपद के ज्यादातर खेतों में जीवांश की मात्रा में कमी देखी गई. साथ ही फॉस्फोरस, सल्फर, नाइट्रोजन और पोटाश आदि तत्त्वों की भी कमी पायी गई है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड में प्रत्येक किसान की भूमि में तत्त्वों की कमी, भूमि में पैदावार क्षमता, रासायनिक खाद के मात्रा की आवश्यकता आदि के विषय में बताया गया है।
इस कार्ड में मिट्टी की 12 प्रकार की जांचें की गयी है, जिनमें मिट्टी में पाए जाने वाले कॉपर, मैंगनीज, आयरन, जिंक, सल्फर के साथ ही अन्य प्रकार की उर्वरक क्षमता का परीक्षण किया गया है। मिट्टी में जिस उर्वरक की क्षमता कम पाई जा रही है उसे कैसे दूर किया जाये इसके बारे में कृषि विभाग के अधिकारी गांव में मृदा स्वास्थ्य कार्ड देने के दौरान ही बता रहे हैं. साथ ही ज्यादा से ज्यादा सड़े हुए गोबर से निर्मित खाद के प्रयोग की सलाह देते हैं।
उप कृषि निदेशक एस पी श्रीवास्तव ने बताया कि प्रधानमंत्री मृदा हेल्थ कार्ड का यह द्वितीय चरण है, इसके अंतर्गत ग्रिड के आधार पर मिट्टी के नमूने लिए जा रहे हैं. सिंचित क्षेत्रों में 2.5 हेक्टेयर और असिंचित क्षेत्रों में 10 हेक्टेयर में एक-एक नमूना लिया जाता है।
इसी नमूने के आधार पर मृदा स्वास्थ्य कार्ड दिया जाता है, जिसमें प्राथमिक और सेकेंडरी पोषक तत्वों की जांच होती है। मुख्य पोषक तत्त्वों में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश जबकि सेकेंडरी में जिंक, मैंगनीज, आयरन, कॉपर आदि की जांच की जाती है। सरकार की तरफ से इस वर्ष के अंतिम महीने तक शत-प्रतिशत ग्रिडों से नमूने लिए जाने का प्रस्ताव है, जिसमें से लगभग 90 फीसदी नमूने लिए जा चुके हैं।
कृषि विभाग का प्रयास है कि सभी किसानों के हाथों में मृदा हेल्थ कार्ड पहुंच जाए, जिसके लिए गोष्ठियों और कार्यक्रमों के माध्यम से उन्हें जानकारी देकर प्रेषित किया जा रहा है। मृदा हेल्थ कार्ड पाने वाले किसानों का कहना है कि उन्हें ये पता ही नहीं था कि उनके खेतों की मिट्टी में किन पदार्थों की कमी है, वह यूरिया, डाई, डीएपी और अन्य रासायनिक खादों का ज्यादा प्रयोग करते थे। अब निश्चित तौर पर उनके खेतों के हेल्थ कार्ड मिलने से उनको खेती करने में और भी आसानी होगी, इससे खेतों की पैदावार बढ़ेगी और मुनाफा भी ज्यादा होगा।
BY- VIJAY MISHRA