घोसी में होने वाला उपचुनाव इस बार बेहद अहम है। 2017 में फागू चौहान की प्रतिष्ठा दांव पर थी और वो महज 7003 वोटों से ही बसपा के अब्बास अंसारी (Abbas Ansari) (मुख्तार अंसारी के बेटे) से जीते थे। (Mukhtar Ansari) फागू चौहान को जहां 88298 वोट मिले थे वहीं अब्बास अंसारी ने 81295 वोट पाए थे। जबकि समाजवादी पार्टी के सुधाकर 59256 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे। घोसी में भाजपा ने तीन बार जीत हासिल की तो तीनों बार फागू चौहान ही प्रत्याशी थे। उनकी व्यक्तिगत छवि भी वहां जीत का जरिया बनी। उनके इस्तीफे के बाद अब इस सीट पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) और प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह (Swatantradev Singh) की प्रतिष्ठा दांव पर है।
दूसरी ओर 2017 विधानसभा चुनाव से सबक लेते हुए सपा और बसपा गठबंधन कर लड़ी तो घोसी लोकसभा की सीट बसपा के खाते में आ गयी। पर इस गठबंधन चुनाव बाद ही टूट गया। उपचुनाव में दोनों की राहें अलग-अलग हो चुकी हैं। 2017 में यहां बसपा की स्थिति सपा से काफी मजबूत रही है। 2019 में भी जो गठबंधन हुआ उसमें भी बसपा को ही फायदा हुआ। ऐसे में बसपा ने सबसे पहले अपना प्रत्याशी भी घोषित कर दिया है। बसपा से अब्दुल कय्यूम अंसारी को प्रत्याशी बनाया गया है। कांग्रेस भी यहां अपनी जमीन तलाशने की जुगत में है और उसने राज मंगल यादव को मैदान में उतारा है। हालांकि अभी तक सपा ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं और न ही भाजपा ने ही किसी के नाम का ऐलान किया है।
हालांकि कहा जा रहा है कि उपचुनाव की संभावित स्थिति कमोबेश 2017 जैसी ही रह सकती है। उस समय के वोटिंग पैटर्न को देखें तो पता चलता है कि पूरी लड़ाई भाजपा और सपा-बसपा के बीच में ही सिमट गयी थी। बसपा के लिये जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली बढ़त को बनाए रखने की चुनौती है तो सपा के लिये यह करो या मरो जैसा है। उधर भारतीय जनता पार्टी पर जीत के लिये दबाव सबसे ज्यादा है, क्योंकि केन्द्र और राज्य दोनों जगह सत्ता पर बीजेपी है।