मेरठ (Meerut) मोदीपुरम स्थित बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान के प्रधान वैज्ञानिक व प्रभारी डॉ. रितेश शर्मा ने बताया कि बासमती की मांग विदेशों में दिनों-दिन बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण काल में जब परी दुनिया में लॉकडाउन था और दुनिया के कुछ देशों में खाने के लिए अनाज नहीं था। ऐसे में हमारी बासमती ने दुनिया के भूखे देशों का पेट भरा। उन्होंने बताया कि बासमती का सबसे बड़ा खरीदार ईराक है। प्रतिवर्ष पैदा होने वाले बासमती चावल का आधे से अधिक ईराक (Iraq) को ही निर्यात होता है, लेकिन 2020 में लगे लॉकडाउन के दौरान ईराक ने बासमती से मुंह फेर लिया। इसके बाद अन्य देशों से जबरदस्त डिमांड आई। 2020 में रिकॉर्ड उत्पादन होने के कारण सभी देशों की पूर्ति की गई। बासमती से किसानों को भी बहुत आर्थिक लाभ पहुंचा है। इसी कारण बासमती धान की बुआई का क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा है।
दुनिया के 125 देशों में होता है बासमती का निर्यात डॉ. रितेश शर्मा के अनुसार, भारतीय बासमती चावल (Indian Basmati Rice) का निर्यात चीन, पाकिस्तान, खाड़ी देशों, अमेरिका समेत दुनिया के लगभग 125 देशों में किया जाता है। यूरोप के देशों में भी अपनी बासमती की खूब डिमांड है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर बासमती चावल की खेती की जा रही है। यहां के किसान निर्यातकों को अपना धान बेचते हैं और निर्यातक विदेशों में उस बासमती चावल को बेचते हैं। इसका सीधा लाभ भी किसानों को आर्थिक लाभ के रूप में हो रहा है।
प्रतिवर्ष बढ़ रहा बासमती का रकबा डॉ. रितेश बताते हैं कि बरसात के महीनों में बोई जाने वाले धान बासमती का रकबा प्रतिवर्ष बढ़ रहा है। मेरठ जिले में 2009 में 17 हजार 629 हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान बोया गया था। जबकि 2010 में 17 हजार 605 हेक्टेयर में धान की बुआई हुई। 2011 में क्षेत्रफल घटकर 16 हजार 159 हेक्टेयर रह गया। 2012 में फिर से 17 हजार 211 हेक्टेयर पहुंच गया। 2013 में 16 हजार 643 हेक्टेयर, 2014 में 16 हजार 421, 2015 में घटकर 15 हजार 521 हेक्टेयर रह गया। 2016 में 16 हजार 122 हेक्टेयर, 2017 में 14 हजार 397 हेक्टेयर, 2018 में 14 हजार 556 में धान बोया गया। इसी तरह से वर्ष 2019 में 17 हजार 162 हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की बुआई हुई।
बासमती विकास निर्यात प्रतिष्ठान किसानों को कर रहा प्रेरित बासमती विकास निर्यात प्रतिष्ठान किसानों को स्वीकृत प्रजातियों की ही बुआई करने को प्रेरित कर रहा है। वैज्ञानिक व प्रभारी डॉ. रितेश शर्मा का कहना है कि बेहतर उपज प्राप्त करने के लिए किसानों को खेतों में अनुमोदित बीज का उपयोग करने को जागरूक किया जा रहा है। बासमती विकास निर्यात प्रतिष्ठान, ऑल इंडिया राइस एक्सपोट्रस एसोसिएशन लगातार पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के विभिन्न गांवों में जाकर किसानों को अनुशासित कीटनाशक की सीमित मात्रा में प्रयोग करने का सुझाव दिया जा रहा है। इससे बासमती की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होगी।
उत्तर प्रदेश के 30 जिलों में होती है बासमती की खेती डॉ. रितेश ने बताया कि पूरी दुनिया में हमारे अलावा 13 जिले पाकिस्तान के जो पंजाब क्षेत्र में आते हैं वहां भी बासमती की खेती होती है। बासमती को जीआई टैग मिला हुआ है। इसलिए इस क्षेत्र के बाहर यदि कोई बासमती की खेती करता है तो उसे बासमती के नाम से नहीं बेचा जा सकता है। बता दें कि उत्तर प्रदेश के 30 जिलों में बासमती चावल की खेती होती है, जिनमें अधिकतर जिले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं। मेरठ का बासमती रिसर्च सेंटर उत्तर प्रदेश समेत अन्य पड़ोसी राज्यों की खेती पर भी नजर रखता है।