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Exclusive: रविदास जयंती तो बहाना है, निशाना तो दलित समाज को लुभाना है, देखें वीडियाे

locationमेरठPublished: Feb 18, 2019 06:13:19 pm

Submitted by:

sanjay sharma

संत रविदास जयंती पर दलितों को जोड़ने का एजेंडा
 

meerut

Exclusive: रविदास जयंती तो इनका बहाना है, निशाना तो दलित समाज को लुभाना है, देखें वीडियाे

केपी त्रिपाठी, मेरठ। भाजपा और उसके अनुषांगिक विंग अब दलितों को लुभाने वाले एजेंडे पर काम कर रहे हैं। 2014 के चुनाव हो या फिर 2017 के विधानसभा चुनाव। भाजपा को दलित वोट मिले थे। जिसका नतीजा भाजपा ने रिकार्ड मतों से जीत दर्ज की थी। कहते हैं राजनीति में परिस्थितियों के बदलते ही दलों की किस्मत भी बदल जाती है। कुछ ऐसा ही भाजपा के साथ हुआ। जिस तेजी से दलित भाजपा से जुड़ा था, उसी झटके के साथ वह कमल से अलग भी होने लगा। इसका नतीजा भाजपा पिछले उपचुनाव में देख चुकी है। प्रदेश में हुए उपचुनाव में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली।
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आरएसएस का आॅपरेशन दलित

अब आरएसएस और उसकी शाखाओं ने दलितों का रूख भाजपा की ओर करने के लिए विशेष एजेंडे पर काम करना शुरू कर दिया है। इसके तहत दलित महापुरूषों के कार्यक्रम कर दलितों की भीड़ को एकत्र कर उनको भाजपा से जोड़ने की कवायद तेज कर दी गई है। संत रविदास जयंती कार्यक्रम इसी ऐजेंडे का एक हिस्सा बताया जा रहा है। आगामी जितने भी दलित महापुरूषों की जयंती या पर्व होंगे। आरएसएस उनको दलितों के साथ मनाएगी।
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पश्चिम की सभी सीटों पर थोक के भाव दलित वोट

दलित बसपा का परंपरागत वोट बैंक है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह से इस वोट बैंक में भाजपा ने सेंधमारी की थी। उससे बहन मायावती का सिंहासन ही हिल उठा था। नतीजा बसपा पूरी तरह से साफ हो गई थी। विशेष तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ और सवर्ण के साथ ही दलितों ने भी खुलकर भाजपा को वोट किया था।
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गांवाें में रैदासी तो शहर में वाल्मीकि और खटीक

शहरी क्षेत्रों में जहां वाल्मीकि और खटीक की संख्या ज्यादा है तो ग्रामीण क्षेत्रों में रैदासी और जाटव की बहुलता में हैं। खटीक और वाल्मीकि भाजपा को वोट करते हैं, लेकिन प्रदेश में हुए उपचुनाव के बाद मायावती के हौसले अब बुलंद हैं। पश्चिम उप्र प्रभारी शमसुद्दीन राइन के अनुसार बसपा का कैडर वोट हमेशा पार्टी के साथ रहा है।
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