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Eid ul Azha : मेरठ में बकरे बचे भैंसें हुईं खूब कुर्बान, जाने क्यों

locationमेरठPublished: Jul 12, 2022 07:32:19 pm

Submitted by:

Kamta Tripathi

Eid ul Azha बकरीद यानी ईद उल अजहा के पर्व का आज तीसरा दिन है। आज भी मेरठ में ईद उल अजहा पर कई जगह पशुओं की कुर्बानी हुईं। लेकिन इस बार बकरीद पर बकरों की कुर्बानी कम हुईं जबकि बड़े पशुओं की कुर्बानी अधिक दी गई। बड़े पशुओं में ईद पर भैंस और भैंसा की कुर्बानी अधिक हुईं। इस ईद के मौके पर लोग बकरे की कुर्बानी देने के लिए कई महीनों पहले से बकरा खरीदकर पालते हैं। लेकिन इस बार बकरीद भैंस और भैंसे की कुर्बानी का अधिक चलन रहा।

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Eid ul Azha : मेरठ में बकरे बचे भैंसें हुईं खूब कुर्बानी, जाने क्यों

Eid ul Azha इस बार मेरठ में बकरीद पर भैंस और बड़े पशुओं की कुर्बानी अधिक हुई। जबकि इस बार बकरे कुर्बानी से बच गए। ऐसा ईद मनाने वाले मुस्लिम समाज के लोगों का कहना है। मुस्लिम समाज के अधिकांश लोगों ने इस बार बड़े पशुओं की कुर्बानी दी। इसके पीछे जो सबसे बड़ा कारण रहा वो था बकरे पर महंगाई की मार और बड़े पशुओं का सस्ता होना। बकरा व्यापारियों की मानें तो इस बार पशु बाजार में एक बकरा कम से कम 15 हजार रूपये का बिक रहा था। ईद के मौके पर लगे बकरा बाजार में ईद उल अजहा से पहले सबसे कम दाम 10800 रुपये में एक बकरा बिका। जबकि एक भैंस की कीमत 25 हजार से 35 हजार रुपये के बीच रही। ये वो भैंस थीं जो दूध देने में असमर्थ थीं। इस कारण इन भैंसों को पशु बाजार में बेंच दिया गया। बकरा महंगा होने के कारण इस बार मुस्लिम समुदाय ने कुर्बाने के लिए विकल्प के रूप में भैंस को चुना। मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मिलकर एक भैंस खरीद ली और सभी ने मिलकर उसकी कुर्बानी दी। इससे ईद के मौके पर कुर्बानी भी हो गई और रूपये भी बच गए। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक पशु व्यापारी ने बताया कि भैंसा जिसको को पश्चिमी उप्र की भाषा में कटड़ा कहा जाता है उसकी कीमत भी इस बार 20 हजार रुपये तक रही। बाजार में कटड़े की कीमत कम और भैंस की अधिक होती हैं। लेकिन जो भैंस दूध देने में असमर्थ होतीं हैं उनकी कीमत काफी कम हो जाती है।

सात लोग मिलकर कर सकते हैं बड़े पशु की कुर्बानी
मेरठ निवासी मौलाना हाजी शफीक के अनुसार बकरे की कुर्बानी एक व्यक्ति या एक परिवार के लोग कर सकते हैं। जबकि बड़े पशु में जैसे भैंस,भैंसा या कटड़े की कुर्बानी सात लोग मिलकर कर सकते हैं। यानी भैंस की कुर्बानी सात लोगों को लगेगी। जबकि बकरे की कुर्बानी एक व्यक्ति को ही लगती है। इसलिए कुर्बानी के लिए सात लोग मिलकर एक भैंस खरीद लाते हैं और कुर्बानी देते हैं। इससे भैंस प्रति व्यक्ति सस्ती भी पड़ती हैं और कुर्बानी भी हो जाती है।
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कुर्बानी पर पड़ा लॉकडाउन का असर
कुछ मुस्लिम व्यापारियों का कहना है कि इस बार बकरीद के मौके पर दी जाने वाली कुर्बानी पर लॉकडाउन का असर पड़ा। इस बार बकरें काफी महंगे बिके। जबकि भैंस सस्ती थी। इस कारण लोगों ने मिलकर एक भैंस ली और उसकी कुर्बानी करवाई। व्यापारिेयों की माने तो दो साल से व्यापार पर कोरोना संक्रमण की मार पड़ी है। जिसके चलते ईंद की खुशियां भी इस बार फीकी ही रहीं।

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