वहीं पंडित अरविंद गिरि ने बताया कि उपच्छाया चंद्रग्रहण के दौरान कोई सूतक काल नहीं होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस ग्रहण का कोई सूतक काल नहीं होता वह ज्यादा प्रभावशाली नहीं होता। जबकि अन्य ग्रहण के नौ घंटे पहले से सूतक काल माना जाता है। ग्रहण जैसा भी हो कभी सकारात्मक नहीं होता है। महीने में एक बार ग्रहण योग का निर्णण होता ही है। जब चंद्रमा और राहु एक साथ होते हैं तो इस योग को ग्रहण योग कहते हैं। यह मासिक ग्रहण होता है। कुछ विशेष ग्रहण होते हैं।
30 नवंबर को लगने वाले ग्रहण की विशेष ग्रहण से तुलना नहीं होगी, लेकिन ग्रहण शब्द नकारात्मक होता है।यह किसी के लिए फायदेमंद नहीं होता है। वर्तमान में राहु वृषभ राशि में है। चंद्रमा वृषभ में आता है तो उच्च का होता है, लेकिन डेढ़ वर्षों के लिए जब चंद्रमा उच्च का होगा तो राहु के साथ ग्रहण योग बन जाएगा। इससे चंद्रमा के उच्च के होने का लाभ आम जनमानस को नहीं मिलेगा।
क्या होता है उपच्छाया चंद्रग्रहण 30 नवंबर को लगने वाला चंद्र ग्रहण उपच्छाया ग्रहण होगा। उपच्छाया चंद्रग्रहण ऐसी स्थिति को कहा जाता है जब चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया न पड़कर उसकी उपच्छाया मात्र पड़ती है। इसमें चंद्रमा पर एक धुंधली सी छाया नजर आती है। ऐसे में पृथ्वी की उपच्छाया में प्रवेश करने से चंद्रमा की छवि धूमिल दिखाई देने लगती है।