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नवरात्रि में घर-घर विराजेंगी गंगा के किनारे की मिट्टी से बनी ये देवी की खास ईको फ्रेंडली मूर्तियां

locationमेरठPublished: Oct 15, 2020 01:24:56 pm

Submitted by:

lokesh verma

Highlights
– 100 रुपए से लेकर 20 हजार कीमत की दुर्गा की प्रतिमा- गंगा के किनारे के मिटटी की बनी देवी प्रतिमाएं पूरी तरह ईको फ्रेंडली- वेस्ट बंगाल से आई आकर्षक देवी प्रतिमाएं बनी लोगों की पसंद

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मेरठ. कोरोना संक्रमण काल के दौरान मंदिरों में भगवान के दर्शन और भक्ति का स्वरूप बदल गया है। कोरोना संक्रमण में दिनों-दिन इजाफा हो रहा है, लेकिन इसके बीच ही लोग नवरात्र में पूजा की तैयारियों में जोर-शोर से जुटे हुए हैं। इस बार नवरात्र में विशेष रूप से तैयार की गई दुर्गा प्रतिमाओं की धूम मची हुई हैं। यह प्रतिमाएं पूरी तरह इको फ्रेंडली हैं। इन्हें गंगा किनारे की मिट्‌टी से तैयार किया गया है।
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मेरठ में इन दिनों गंगा के किनारे के मिटटी की बनी दुर्गा प्रतिमाओं की बाजार में धूम है। ये दुर्गा प्रतिमाएं देखने में काफी आकर्षक और मोहक हैं। मेरठ में बेजान प्रतिमाओं में अपनी कला से जान डालने वाले मूर्तिकार प्रमोद बताते हैं कि इस बार बंगाल के कारीगरों ने वहीं पर गंगा के किनारे की मिटटी से दुर्गा प्रतिमाएं तैयार कर भेजी हैं। उन्होंने बताया कि जुलाई से कलकत्ता में ही बंगाली कलाकार लगातार तीन माह से मेहनत कर मूर्तियां तयार कर रहे थे। ये जो दुर्गा की मूर्तियां बनाई हैं उनमें पारंपरिक तौर तरीकों का इस्तेमाल किया गया है। इन मूर्तियों में प्लास्टर ऑफ पेरिस का प्रयोग नहीं किया है। मूर्तिकार प्रमोद कहते हैं कि कोलकाता से लाए नेचुरल कलर्स को खड़ी पाउडर में मिलाकर मूर्तियां की रंगाई कर रहे हैं। बांस, पुआल और गत्तों के साथ गोंद, अरारोट इत्यादि का इस्तेमाल करके मूर्तियों को आकर्षक रूप दिया गया है। उन्होंने बताया कि चमक लाने के लिए सिर्फ बार्निश आयल का प्रयोग किया जा रहा है। इसके प्रयोग करने से न तो प्राकृति को खतरा है। न ही नदियों में मूर्ति विसर्जन के बाद जलीय जीवों को इससे नुकसान होगी।
100 रुपए से लेकर 20 हजार तक की दुर्गा प्रतिमाएं

मूर्तिकार प्रमोद ने पत्रिका को बताया कि इन मूर्तियों की कीमत भी मूर्तियों की खासियत के हिसाब से रखी गई है। प्रमोद ने बताया कि उनके यहां पर 100 रुपए से लेकर 20 हजार रुपए तक की दुर्गा प्रतिमाएं हैं। मूर्ति के लिए दूर-दूर से आर्डर आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनके पास उत्तराचंल और पश्चिम उत्तर प्रदेश के अलावा हिमाचल से भी कई मूर्ति के आर्डर मिले हैं, जिन्हें तैयार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि एक मूर्ति को आकर्षक रूप देने में करीब दो दिन का समय लग जाता है।
ट्रासपोर्ट के चलते बढ़ गई कीमत

प्रमोद ने बताया कि प्रतिवर्ष बंगाली कारीगर आकर मूर्तियों की तैयारी में जुट जाते थे, लेकिन इस बार कोरोना संक्रमण के चलते बंगाली कारीगर नहीं आए तो उनके लिए कलकत्ता में ही मूर्ति बनाने की व्यवस्था की गई। उन्होंने बताया कि ट्रासपोर्ट से मूर्तियों को मंगवाया गया, जिसके कारण इस बार मूर्तियों की कास्ट भी काफी बढ़ गई है।
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