scriptहिंसा और घृणा का प्रचार अतिवादियों और आतंकवादियों द्वारा निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए किया जा रहा है: उलेमा | Extremism of violence and hatred extremists personal selfishness | Patrika News

हिंसा और घृणा का प्रचार अतिवादियों और आतंकवादियों द्वारा निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए किया जा रहा है: उलेमा

locationमेरठPublished: Jan 19, 2021 08:50:11 pm

Submitted by:

shivmani tyagi

मजलिश में उग्रवाद और अतिवाद के खिलाफ एकजुटता का संदेश
सदर में मदरसे में आयोजित हुआ कार्यक्रम

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सभागार में माैजूद छात्र

पत्रिका न्यूज़ नेटवर्क
मेरठ . अतिवाद और उग्रवाद प्रायः हिंसा के कारण बनते हैं जिनसे शांति एवं सदभावना खतरे में पड़ जाती है। इसलिए इस्लामिक विद्धानों, उलेमाओं और समुदाय के नेताओं को इस पर सकारात्मक हस्तक्षेप और विचार-विमर्श करने की आवश्यक्ता है।
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यह बात इस्लामिक विद्धान मौलाना शाहीन चतुर्वेदी ने कही है। सदर में आयोजित मजलिश में उन्होंने खिताब करते हुए कहा कि वास्तव में पैगम्बर ने बहुलवाद प्रजातंत्र और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का समर्थन किया था। जिसे दारूल इस्लाम बार-बार प्रमाणित करते हैं। हिंसा और घृणा का प्रचार अतिवादियों और आतंकवादियों द्वारा निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए किया जा रहा है। पैगम्बर ने खुद को शांति एवं सदभावना के लिए घोषित किया था उन्होंने कहा कि जो उनके द्वारा किए गए पहल जैसे बहुलवाद और वैश्विक भाईचारे के उद्देश्य से मिश्क ए मदीना के बीच समझौते से प्रमाणित है। उन्होंने कहा कि एक सच्चा मुसलमान अन्य मुस्लिमों या गैर मुस्लिमों पर कभी भी अत्याचार तथा मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं करेगा। मुस्लिम के साथ-साथ सभी गैर मुस्लिम भी मदीना में पूरी सुरक्षा धार्मिक स्वतंत्रता और प्रजातान्त्रिक अधिकारों के साथ रहते थे।
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मौलाना कादिर ने कहा कि वास्तव में अतिवादी और आतंकी संगठन पैगम्बर के धर्म निरपेक्ष और प्रजातांत्रिक अनुशासन पद्धति की नींव को धृष्टतापूर्वक कमजोर करते हैं जबकि भारतीय मुस्लिम उक्त मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध हैं और सभी पंथों और सिद्धांतों के लोगों के साथ आध्यात्मिक समंजन पर केंद्रित समावेशी धार्मिक व्याख्यान के पक्षधर हैं। सभी ने एकजुट होकर कहा कि सरकार को चाहिए कि वह अतिवादी इस्लाम और हिंसा के समर्थकों अर्थात खिलाफ वैश्विक इस्लामिक खलीफा और गैर मुस्लिमों के साथ सतत टकराव पैदा करने वालों के खिलाफ कड़ा कदम उठाए। इस तरह के गलत लोग व्यक्तिगत आजादी, धार्मिक स्वतंत्रता,धर्म निरपेक्षता, लोकतंत्र तथा सर्वमुक्तिवाद के विरोधी होते हैं। इसलिए धार्मिक-राजनैतिक नेताओं तथा बुद्धिजीवियों और मुसलमानों द्वारा प्रतिकार एवं निन्दा की जाए। ऐसी स्थिति में उपयुक्त व्याख्यान तथा इन तत्वों के साहित्यशास्त्रों पर प्रतिबंध की जरूरत है जिनमें इस्लामिक धर्मग्रंथों को अतिवादी और उग्रवादी विचारधारा के साथ मिला दिया गया है।
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