तेल जरूरतों का 85 फीसदी और प्राकृतिक गैस जरूरतों का 56 फीसदी आयात के माध्यम से पूरा होता है। ऐसे में यदि तेल-गैस की कीमतें बढ़ती हैं तो देश पर आर्थिक दबाव बढ़ जाएगा। उसे तेल कीमतों के रूप में ज्यादा विदेशी मुद्रा चुकानी होगी जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आएगी। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में डॉलर की कीमतें बढ़ेंगी और रुपये की कीमतों में गिरावट आएगी। रुपये की कीमतों में गिरावट महंगाई बढ़ने का बड़ा अतिरिक्त कारण बन सकता है।
रूस पूरी दुनिया में तेल-गैस का सबसे बड़ा उत्पादक है। यदि उस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगते हैं तो इससे दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है। दूसरी अर्थव्यवस्थाओं पर असर से भारत के निर्यात क्षेत्र पर संकट गहरा सकता है जो भारत के लिए अतिरिक्त समस्या का कारण बन सकता है। डॉलर की कीमतें बढ़ने, रुपये की कीमतों में ज्यादा कमी होने और महंगाई बढ़ने से सरकार के लिए बजट घाटा कम करने में मुश्किलें आ सकती हैं। इससे कल्याणकारी योजनाओं पर होने वाले खर्च में कटौती भी हो सकती है जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।