दरअसल, बेटे रूपक की हत्या होने के बाद से ही उसके लाश का अंतिम संस्कार के लिए कंकरखेड़ा थाने और अधिकारियों के यहाँ बेसहारा मां दर—दर की ठोकरे खा रही है। रूपक के साथियों ने ही हत्या करके टुकड़े टुकड़े करके बोरवेल में फेक दिया था। जिसकी लाश हत्या के 44 दिन बीतने के बाद भी नही निकाली जा सकी है। पुलिस ने हत्यारे साथियों को जेल भेजा तो सोचा कि उसका काम पूरा हो गया। जबकि लाश के टुकटे निकालने के लिए न तो पुलिस अधिकारियों ने और न ही प्रशासन ने कोई गंभीरता दिखाई।
जब तक नही मिलेगी बेटे की लाश तब तक रहेगी भूख हड़ताल पर :— मृतक रूपक की मां मिथिलेश ने अब ठान लिया है कि जब तक उसके बेटे रूपक की लाश नहीं मिल जाती वो भूख हड़ताल से नहीं उठेगी। वह अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठ गई है। रूपक के पिता जसवंत भी उनके साथ हैं। दोनों की किस्मत अभी ऐसी भी नहीं कि अपने लाल की अर्थी को कंधा भी दे सकें।
कलयुगी दोस्तों ने कर दिए थे टुकड़े—टुकड़े :— फाजलपुर के अनूपनगर निवासी जसवंत का पुत्र रूपक 26 जून तक जिंदा था। लेकिन उसी दिन रूपक के कलियुगी दोस्त विकास, मनीष, निसार, विशाल और अमरदीप ने उसकी हत्या कर दी। उसके बाद इन हत्यारोपितों ने कुल्हाड़ी से शव के कई टुकड़े कर उसे एक बोरवेल में फेंक दिया। बाद में सभी आरोपित पकड़े गए लेकिन रूपक के बाल व कुछ अवशेष को छोड़ उसके शव के टुकड़े आज तक बरामद नहीं किए जा सके। लालफीताशाही में उलझी व्यवस्था के लिए रूपक एक आईना है कि जिसमें वो अपनी सूरत देखे, समझे, और खुद का आकलन करें।
जिम्मेदारों ने नही निभाया अपना फर्ज :— हत्यारोपितों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस प्रशासन ने बोरवेल की कुछ खोदाई जरूर करवाई। लेकिन कामयाबी न मिलने पर उसके बाद का पूरा मामले से जिम्मेदारों ने अपना पल्ला झाड लिया। जिम्मेदार अफसर अगर अपना फर्ज निभाते तो शायद मिथलेश को कलेजे के टुकड़े की लाश मिल जाती।