यह भी पढ़ेंः Independence Day 2019: मदरसे में फहराया गया तिरंगा, मौलानाओं ने शहीदों के लिए कही ये बातें भाई-बहन के रिश्ते की ऐसे हुई शुरुआत दरअसल, कोटला क्षेत्र की ये तीन बहनें फिरोजा, फरजाना और चांदबीबी हैं। चांदबीबी ने बताया कि 1970 की बात है, बड़ी बहन फिरोजा को नजला-जुकाम हुआ था। पिता ने फिरोजा को थापर नगर गली नंबर दो निवासी होम्योपैथी चिकित्सक डा. घनश्याम दास से दिखाया था और इलाज चला। इलाज के दौरान ही डा. दास ने फिरोजा को अपनी बहन बना लिया और रक्षा बंधन पर राखी बाधंने के लिए घर आने के लिए कहा। पहली बार फिरोजा ने डा. दास को राखी बांधी। इसकेे बाद फिरोजा के साथ फरजाना व चांदबीबी भी राखी बांधने लगीं। तभी से ये मुस्लिम बेटियां रक्षा बंधन पर डा. दास के परिवार के घर पर राखी बांधने के लिए जाती हैं।
यह भी पढ़ेंः कैंट बोर्ड के मुख्य अधिशासी अभियंता बर्खास्त, इन सात मामलों को लेकर चल रही थी जांच अब उनके बेटों को बांधती है राखी डा. घनश्याम दास के तीन बेटे पुनीत, ललित और अमित।इनमें अमित अमेरिका में बड़ा डाॅक्टर है। अन्य दो बेटे भी डाॅक्टर हैं। तीन मुस्लिम बेटियों के बच्चे भी बड़े हो गए हैं। तीनों बहनें भाई डा. दास के बेटों को राखी बांधती हैं तो उनके बच्चे भी आपस में रक्षा बंधन मनाते हैं।
यह भी पढ़ेंः Raksha Bandhan 2019: इस बड़ी बहन की मेहनत से टीम इंडिया को मिला स्टार बॉलर, जानिए पूरी कहानी रक्षा बंधन पर पूरे दिन होता है उत्सव चांदबीबी का कहना है कि पिछले 50 वर्षों में रक्षा बंधन से पहले उनके भाई डा. दास के घर से आने का न्योता आता है। हम तीनों बहनें बच्चों की फेमलियों के साथ वहां पहुंचते हैं। भाई के बेटों की बहुएं सत्कार के बाद राखी बांधकर खाना खिलाकर शाम को भेजती हैं। डा. दास का बड़ा बेटा अमेरिका से जब घर आता है तो उनसे मिले बगैर नहीं जाता। चांदबीबी ने बताया कि दिसंबर में उनकी बेटी की शादी हुई थी तो तीनों बेटों मिलकर उन्हें भात दिया था। बेटी की ससुराल के लोग भी उनकेे भाई के यहां जाते हैं।
यह भी पढ़ेंः #UPDusKaDum यूपी के इस शहर के इन 10 खिलाडिय़ों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया, जानिए इनके बारे में हमेशा कायम रहेगा भाई-बहन का रिश्ता चांदबीबी ने बताया कि एक बार ईद और रक्षा बंधन एक ही दिन आए थे तो हमारे परिवार के सभी लोगों ने भाई डा. दास के यहां जाकर अपना रोजा खोला था। उन्होंने बताया कि 1970 से अब तक शहर में कई बार हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए, 1982 दंगे में तो भाई हमारे घर पर ही थे। उन्होंने ऐसा ही महसूस किया, जैसे वह अपने घर पर हैं। लेकिन दोनों परिवारों के रिश्ते में रत्तीभर फर्क नहीं आया। इस बार भाई डा. दास के परिवार में एक मौत होने के कारण दोनों परिवार रक्षा बंधन नहीं मना रहे हैं। छोटी बहन चांदबीबी का कहना है कि भाई-बहन का यह रिश्ता दोनों परिवारों के बीच हमेशा कायम रहेगा, चाहे जो हो जाए।