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कर्बला के 72 शहीदों के 40वें पर निकला जुलूस, देखने वालों के रोंगटे खड़े हो गए

locationमेरठPublished: Oct 22, 2019 08:36:16 pm

Submitted by:

sanjay sharma

Highlights

मात्र 16 वर्ष की आयु में खुसरो ने लिखनी शुरू कर दी थी शायरी
जुलस में शामिल अजादारों ने शबीह-ए-मुबारक की जियारत की
चेहल्लुम का जुलूस को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ी

 

meerut
मेरठ। जैदी फार्म स्थित इमामबाड़ा मैदान से चेहल्लुम का जुलूस शुरू हुआ। जुलूस में मातमी अंजुमन अपने अलम मुबारक के साथ नोहाख्वानी और सीनाजनी करते कर्बला की ओर कदम बढ़ाते चले। जिसमें खूनी मातम किया गया। जुलूस अपने निर्धारित मार्ग से निकाला गया। जुलूस में शामिल अजादारों ने अलम, झूला, ताबूत व जुलजनाह सहित अन्य शबीह-ए-मुबारक की जियारत की।
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इस मौके पर अलग-अलग संस्थाओं ने जुलूस भी निकाले और मजलिस कार्यक्रम भी चलते रहे। वहीं श्रद्धालुओं ने खूनी मातम भी किया। मातम के दौरान या हुसैन..या हुसैन कहते हुए श्रद्धालुओं ने शरीर पर नुकीली वस्तुएं भी बरसाईं। आसमान में हसन हुसैन की सदायें गूंजने लगी। इस दौरान मजलिस में कई धार्मिक उलमाओं के बारे में बताया गया। जिसमें से एक थे हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक खुसरो। जिसमें अली हैदर ने बताया कि खुसरो का जन्म 1253 ई में हुआ था। इनको सुल्तान बलवन और गयासुद्दीन खिलजी से संरक्षण प्राप्त था।
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अपनी शायरी और गजल के हुनर को आगे बढ़ाते हुए खुसरो ने कई और दीवान लिख डाले। जाने-माने शायर खुसरो ने कव्वाली की शुरूआत की। जो सूफी, रूहानी संगीत और पारसी के अलावा अन्य परंपराओं का संगम है। इन्होंने सुलहकल नामक एक ऐसी संस्था बनाई। जहां हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों मिलकर परस्पर धार्मिक मतों पर चर्चा करते थे। साथ ही मिली-जुली बोली हिन्दवी को बनाने का श्रेय भी इन्हें जाता है।
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