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वेस्ट यूपी में तीन अधिवक्ताओं की हत्या से आक्रोश, पुलिस अफसरों के सामने रखीं ये मांगें, देखें वीडियो इस मौके पर अलग-अलग संस्थाओं ने जुलूस भी निकाले और मजलिस कार्यक्रम भी चलते रहे। वहीं श्रद्धालुओं ने खूनी मातम भी किया। मातम के दौरान या हुसैन..या हुसैन कहते हुए श्रद्धालुओं ने शरीर पर नुकीली वस्तुएं भी बरसाईं। आसमान में हसन हुसैन की सदायें गूंजने लगी। इस दौरान मजलिस में कई धार्मिक उलमाओं के बारे में बताया गया। जिसमें से एक थे हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक खुसरो। जिसमें अली हैदर ने बताया कि खुसरो का जन्म 1253 ई में हुआ था। इनको सुल्तान बलवन और गयासुद्दीन खिलजी से संरक्षण प्राप्त था।
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Weather Alert: जहरीली हवा में सांस लेना हुआ दूभर, तापमान में कमी के बावजूद दिवाली तक बिगड़ेगी स्थिति अपनी शायरी और गजल के हुनर को आगे बढ़ाते हुए खुसरो ने कई और दीवान लिख डाले। जाने-माने शायर खुसरो ने कव्वाली की शुरूआत की। जो सूफी, रूहानी संगीत और पारसी के अलावा अन्य परंपराओं का संगम है। इन्होंने सुलहकल नामक एक ऐसी संस्था बनाई। जहां हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों मिलकर परस्पर धार्मिक मतों पर चर्चा करते थे। साथ ही मिली-जुली बोली हिन्दवी को बनाने का श्रेय भी इन्हें जाता है।