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नवरात्रि देवी की पूजा के साथ खुद को प्रकृति के साथ समन्वित करने का तरीका – पुण्डरीक

locationमेरठPublished: Sep 26, 2022 12:36:29 pm

Submitted by:

Kamta Tripathi

नवरात्रि के दौरान संपूर्ण देश इस दौरान धार्मिक रंगों में डूबा रहता है। इस धार्मिक उत्सव को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिभाषित करते हुए पुण्डरीक महाराज ने कहा कि वास्तव में ये समय प्रकृति के साथ मानव शरीर के नौ चक्रों को सिंक अर्थात समन्वित करने का अवसर है। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म की प्रत्येक क्रिया के पीछे एक वैज्ञानिक तथ्य है। वर्ष में दो नवरात्रि आती है जब हम उपवास करते हैं। ये दोनों दो मौसम के संधि काल में आती है। इस समय उपवास के कारण आने वाले मौसम के लिए शरीर तैयार होता है।

नवरात्रि देवी की पूजा के साथ खुद को प्रकृति के साथ समन्वित करने का तरीका

नवरात्रि देवी की पूजा के साथ खुद को प्रकृति के साथ समन्वित करने का तरीका

आज से नवरात्रि का पर्व शुरू हो गया है। मेरठ के देवी मंदिरों में आज से विशेष पूजा अर्चना शुरू हो चुकी है। नवरात्रि शक्ति की उपासना का पर्व भी है। लेकिन नवरात्रि का अपना वैज्ञानिक महत्व भी होता है। ये जानकारी महाराज पुण्डरीक गोस्वामी ने दी है। उन्होंने बताया कि साल में दो समय ऐसा होता है जब सूर्य पृथ्वी की इक्वेटर लाइन के ऊपर होता है। इक्विनॉक्स ऐसा समय होता है जब दिन और रात समान अवधि के होते हैं। इसे भारत में नवरात्रि के रूप में मनाते हैं। पृथ्वी का अक्ष भी साढ़े तेईस डिग्री पर झुका हुआ है। ध्रुव तारा उसके अक्ष के ऊपर आता है। इन सभी का अपना महत्व है। वैज्ञानिक मानते हैं कि हमारी भी बायो क्लॉक होती है। जिसे हम अपनी तरह से अपनी आदतों के साथ विकसित करते हैं। नवरात्रि वो समय है जब अपनी बायो क्लॉक को प्रकृति की क्लॉक के साथ समन्वित यानी सिंक करते हैं।

पुंडरीक महाराज ने बताया कि नवरात्रि के समय हम प्रकृति की पूजा करते हैं। इक्विनॉक्स वो समय भी है जब प्रकृति में असीम ऊर्जा का संचय होता है। उन्होंने कहा कि इस देश में देवी का पूजन करते हैं और दूसरी तरफ उनके स्वरूप वाली स्त्री पर अत्याचार होता है। वास्तव में स्त्री का संपूर्ण जीवन ही नौ देवियां हैंए हम इनको माताओं से जोड़ते हैं। जन्म लेती हुई कन्या ही शैलपुत्री है तो हम भ्रूण हत्या की बात सोच भी कैसे सकते हैं! विवाह के पूर्व चंद्रमा की तरह निर्मल रहने वाली बेटी ही चंद्रघंटा है। नए जीवन को जन्म देने वाली और गर्भ धारण करने वाली स्त्री ही कुष्मांडा है। संतान को हृदय से लगाकर दूध पिलाने वाली स्त्री ही स्कंध माता है।

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पुंडरीक ने बताया कि इस नवरात्रि के पीछे विज्ञान है। योग परंपरा के अनुसार हमारे शरीर में नौ चक्र हैं। सात भीतर हैं और दो शरीर के बाहर हैं। हम नौ रात्रियों में इन नौ चक्रों को सिंक करते हैं। समन्वय में लाते हैं। और उन सब चक्रों का अपना रंग है। नौ दिन के उतने ही मंत्र हैं और उच्च लक्ष्यों के लिए उपवास का प्रावधान है। उपवास, साधना, प्रार्थना और मंत्र के अलावा अन्न दान, गौशाला में पुण्य कार्य भी नवरात्रि के समय संपन्न किए जाते हैं। अपनी दिनचर्या को सही रखते हुएए खानपान को सात्विक रखते हुए विधिपूर्वक सिंक करते हैं।
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