
सहरी के समय रोजेदारों इस ताकतवर को जरूर खाते हैं, जानिए इसके बारे में
मेरठ। इन दिनों मुकद्दस रमजान का दौर चल रहा है। मस्जिदों में तरावीह पढ़ी जा रही है और खुदा की इबादत में रोजेदार सिर सजदा कर रहे हैं। रमजान में बिना खाए-पिए पूरा दिन बिताना खुदा का करिश्मा ही कहलाएगा। यह महीने सभी को सच्चाई और अच्छाई के रास्ते पर चलना सिखाता है। रमजान के समय में सभी मुस्लिम रोजा रखते हैं। जिसकी शुरुआत सहरी के बाद होती है। दिन में 24 घंटे में एक बार रोजे का समापन इफ्तारी के दौरान किया जाता है। सहरी के बाद रोज़ा रखने की दुआ पढ़ी जाती है और इफ्तारी के बाद रोजा खोलने की दुआ। माना जाता है ये दुआ खुदा के लिए रोज़ा रखने के लिए की जाती है।
शीरमाल रोजेदार के लिए काफी लाभकारी
क्या आप जानते हैं कि सहरी के दौरान खाई जाने वाली एक ऐसी चीज भी है, जो रोजेदारों के लिए रोजा रखने के दौरान उन्हें चुस्त-दुरूस्त और तन्दुरूस्त बनाए रखती है। यह चीज का नाम है शीरमाल। मेरठ की मशहूर शीरमाल आमतौर पर रमजान के दौरान ही बनाई जाती है। रमजान शुरू होते ही मेरठ के अधिकांश स्थानों पर शीरमाल बनाने की तैयारी शुरू हो जाती है। सहरी के दौरान अधिकांश रोजेदार इसी शीरमाल को खाकर अपना रोजा रखने की शुरूआत प्रतिदिन करते हैं।
ये है विशेषता, दिल्ली और पंजाब तक है सप्लाई
मेरठ में बनी इस शीरमाल की विशेषता है कि यह पूरी तरह से देशी घी, मक्खन,दूध और ड्राईफ्रूटस से बनाई जाती है। रोजा अफ्तारी के समय सहरी में खाई जाने वाली इस शीरमाल में गजब की ताकत होती है। जो रोजेदारों को दिनभर चुस्त-दुरूस्त बनाए रखती है। मेरठ के शाहपीर गेट, बुढ़ाना गेट, घंटाघर, गोला कुंआ, रजबन और अन्य देहाती क्षेत्रों में इस शीरमाल का रोजेदारों के बीच जबरदस्त क्रेज रहता है। मेरठ के प्रसिद्ध शीरमाल विक्रेता हाजी नूर मोहम्मद बताते हैं कि मेरठ की बनी शीरमाल दिल्ली और पंजाब तक सप्लाई की जाती है। वह बताते हैं कि पहले सहरी के दौरान दूध और ब्रेड खाने का चलन था, लेकिन शीरमाल के आने के बाद इसको दूध में भिगो दिया जाता है जिससे यह रबड़ी की तरह हो जाती है और काफी पौष्टिक होती है।
Published on:
20 May 2018 09:14 pm
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