थोडी सी बात पर दंगा थी यहां आम बात और तुरंत लगता था लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध
ऐेतिहासिक शहर मेरठ के निवासियों को इस बात पर फक्र है कि देश की जंग-ए-आजादी की पहली चिंगारी यहीं से भड़की थी। 10 मई 1857 से लेकर 15 अगस्त 1947 तक इस शहर के हिंदुओं और मुसलमानों ने बराबर की कुरबानियाँ दी। मेरठ के लोगों को इस पर नाज है कि इस जिले के लाेगाें ने सबसे पहले देश को आजाद कराने के लिए लड़ाई शुरू की थी। यह अलग बात है कि पिछले कुछ दिनाें से मेरठ ‘दंगों का शहर’ के नाम से भी बदनाम हुआ है। हालात यहां तक हाे गए हैं कि इस नए मिजाज के शहर में कब किस बात पर दंगा भड़क जाए कहना मुश्किल है। इसी शहर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ अंडा फूटने पर भी दंगा हो जाता है। यह बात यूँ ही नहीं कही जाती दरअसल एेसा हाे चुका है आैर वर्ष 1993 में मात्र अंडा फूटने पर मेरठ में दंगा भड़क उठा था।
ऐेतिहासिक शहर मेरठ के निवासियों को इस बात पर फक्र है कि देश की जंग-ए-आजादी की पहली चिंगारी यहीं से भड़की थी। 10 मई 1857 से लेकर 15 अगस्त 1947 तक इस शहर के हिंदुओं और मुसलमानों ने बराबर की कुरबानियाँ दी। मेरठ के लोगों को इस पर नाज है कि इस जिले के लाेगाें ने सबसे पहले देश को आजाद कराने के लिए लड़ाई शुरू की थी। यह अलग बात है कि पिछले कुछ दिनाें से मेरठ ‘दंगों का शहर’ के नाम से भी बदनाम हुआ है। हालात यहां तक हाे गए हैं कि इस नए मिजाज के शहर में कब किस बात पर दंगा भड़क जाए कहना मुश्किल है। इसी शहर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ अंडा फूटने पर भी दंगा हो जाता है। यह बात यूँ ही नहीं कही जाती दरअसल एेसा हाे चुका है आैर वर्ष 1993 में मात्र अंडा फूटने पर मेरठ में दंगा भड़क उठा था।
1968 से अब तक लाउडस्पीकर पर लग चुका सात बार प्रतिबंध :-
मेरठ जिले में 1968 से अब तक लाउडस्पीकर पर सात बार प्रतिबंध लग चुका है। 1968 में जब जम्मू कश्मीर के वजीर ए आजम रहे स्वर्गीय शेख अब्दुल्लाह मेरठ आए थे, तो मेरठ सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलसा था। उस दौरान धार्मिक स्थलों पर माइक और लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। यह प्रतिबंध 45 दिन चला था। इसके बाद सितंबर 1982 में मंदिर-मजार विवाद के चलते मेरठ ने लगभग तीन महीने कर्फ्यू की मार झेली तब यह प्रतिबंध चार महीने चला था। उस समय प्रदेश में सरकार कांग्रेस की थी। इसके बाद मई 1987 में हुआ दंगे के दौरान प्रतिबंध लगा। 1987 के दंगों में तो धार्मिक स्थलो से पुलिस और सेना के जवानों ने लाउडस्पीकर भी उतार लिए थे। इसके बाद राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के चलते नवंबर 1990 में और मई 1991 में भी खूनी दंगों की दास्तान के कारण धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध लगाया गया।
मेरठ जिले में 1968 से अब तक लाउडस्पीकर पर सात बार प्रतिबंध लग चुका है। 1968 में जब जम्मू कश्मीर के वजीर ए आजम रहे स्वर्गीय शेख अब्दुल्लाह मेरठ आए थे, तो मेरठ सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलसा था। उस दौरान धार्मिक स्थलों पर माइक और लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। यह प्रतिबंध 45 दिन चला था। इसके बाद सितंबर 1982 में मंदिर-मजार विवाद के चलते मेरठ ने लगभग तीन महीने कर्फ्यू की मार झेली तब यह प्रतिबंध चार महीने चला था। उस समय प्रदेश में सरकार कांग्रेस की थी। इसके बाद मई 1987 में हुआ दंगे के दौरान प्रतिबंध लगा। 1987 के दंगों में तो धार्मिक स्थलो से पुलिस और सेना के जवानों ने लाउडस्पीकर भी उतार लिए थे। इसके बाद राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के चलते नवंबर 1990 में और मई 1991 में भी खूनी दंगों की दास्तान के कारण धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध लगाया गया।
१५०० से भी अधिक धार्मिक स्थल हैं मेरठ में मेरठ जिले मे हर साल धार्मिक स्थलों की गिनती की जाती है। इसका कारण प्रतिवर्ष लगने वाला कांवड मेला है। स्थानीय अभिसूचना इकाई के अनुसार जिले में कुल धार्मिक स्थलों की संख्या 1721 है। इसमें मेरठ की तीन तहसीलों मेरठ, मवाना और सरधना के 657 गांवों और शहर के धार्मिक स्थल शामिल हैं। इतनी बड़ी संख्या में धार्मिक स्थलाें काे लाउडस्पीकर की अनुमति देने के लिए जिले काे चार जोन में बांटा गया है। इसमें औद्योगिक ,वाणिज्यिक, आवासीय और धार्मिक स्थल साइलेंस हाेंगे।
इतनी आवाज में बज सकेंगे लाउडस्पीकर
ध्वनि सीमा दिन में
साइलेंस जाेन 50 डेसीमल
औद्योगिक जाेन 75 डेसीमल
वाणिज्यिक जाेन 65 डेसीमल
आवासीय जाेन 55 डेसीमल ध्वनि सीमा रात में साइलेंस जाेन 40 डेसीमल
औद्योगिक जाेन 70 डेसीमल
वाणिज्यिक जाेन 55 डेसीमल
आवासीय जाेन 45 डेसीमल
ध्वनि सीमा दिन में
साइलेंस जाेन 50 डेसीमल
औद्योगिक जाेन 75 डेसीमल
वाणिज्यिक जाेन 65 डेसीमल
आवासीय जाेन 55 डेसीमल ध्वनि सीमा रात में साइलेंस जाेन 40 डेसीमल
औद्योगिक जाेन 70 डेसीमल
वाणिज्यिक जाेन 55 डेसीमल
आवासीय जाेन 45 डेसीमल