पुलिस अधीक्षक पद से रिटायर पंडित छीतर सिंह ने 1965 में इस मंदिर का निर्माण कराया था। छीतर सिंह ने 1960 में ही मंदिर के लिए भूमि खरीद ली थी। एक हजार वर्ग गज में यह मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर का निर्माण गोलाकार रूप में कराया गया है। छत को खिलते हुए कमल के फूल का रूप दिया गया है, इसीलिए इसे गोल मंदिर कहा जाता है।
मंदिर के अंदर लगा हुआ कल्पवृक्ष का पेड़ भी लोगों के लिए आस्था का केंद्र है। लोगों का मानना है कल्पवृक्ष से जो भी मन्नत मांगो वह पूरी होती है। लोग इस पर कलावा बांधकर अपनी मन्नत मांगते हैं। मंदिर को चलाने के लिए दुर्गा देवी चैरिटेबल ट्रस्ट बनाया गया है। इस मंदिर में सच्चे मन से जो भी मांगो, वह मन्नत पूरी होती है। नवरात्र में यहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है।
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