मंदिर के आचार्य पंडित हरीश चंद्र जोशी बताते हैं कि त्रेता युवक में दशानन रावण की पत्नी मंदोदरी अपनी सखियों के साथ यहां आती थी। वह भगवान शिव की विधिवत पूजा अर्चना किया करती थी। बिल्लेश्वर नाथ महादेव का मंदिर आज भी मेरठ में मौजूद हैं। मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ ने मंदोदरी की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें इस मंदिर में दर्शन दिए थे। मंदोदरी ने वरदान मांगा था कि उनका पति इस धरती पर सबसे बड़ा विद्वान और शक्तिशाली हो। इसी मंदिर के पास मां काली का भी ऐतिहासिक मंदिर है, जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। सभी को पूर्ण विश्वास है कि इस सिद्धपीठ में ईश्वर से जो भी वरदान मांगा जाएगा, वो अवश्य पूर्ण होगा।
मेरठ का प्राचीन नाम मयदन्त का खेड़ा था। यह मय दानव की राजधानी थी। मय दानव की पुत्री का ही नाम मंदोदरी था। मंदोदरी का विवाह रावण से हुआ था, इसलिए मेरठ को रावण की ससुराल कहा जाता है। वहीं, मेरठ के इस प्रसिद्ध मंदिर में पूजा अर्चना करने से न केवल मन की मुराद पूरी होती है, बल्कि जीवन सुख शान्ति से व्यतीत होता है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर भूमि पूजन का जश्न मनाने की तैयारी मेरठ में भी चल रही है। लोग अपने—अपने घरों में दीप जलाएंगे और जश्न मनाएंगे।
मेरठ से भेजी गई मिट्टी बता दें कि रावण का ससुराल कहे जाने वाले मेरठ के तीन पवित्र धार्मिक स्थलों की मिट्टी अलग-अलग कलशों में अयोध्या भेजी गई है। जिसका इस्तेमाल राम मंदिर निर्माण में किया जाएगा। एक कलश में पवित्र तीर्थ स्थली गगोल की मिट्टी, दूसरे में मेरठ के प्रसिद्ध औघड़नाथ मंदिर की मिट्टी और तीसरे कलश में मेरठ के प्रसिद्ध बालाजी व शनि धाम की मिट्टी भेजी गई है।