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मेरठ मेडिकल कालेज में आठ साल के बच्चे में दिल की दुर्लभ बीमारी विलियम्स-ब्यूरेन सिंड्रोम का सफल इलाज

मेरठ मेडिकल कालेज में आठ साल के बच्चे में दिल की दुर्लभ बीमारी विलियम्स-ब्यूरेन सिंड्रोम का सफल इलाज किया गया। बच्चे को सीने में दर्द और थकान की शिकायत थी।

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मेरठ

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Kamta Tripathi

Nov 08, 2023

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बच्चे में विलियम्स-ब्यूरेन सिंड्रोम बीमारी का सफल इलाज करने वाली मेरठ मेडिकल कालेज हृदय रोग विभाग टीम।

Meerut LLRM : मेरठ में एक आठ साल के बच्चे को दिल की दुर्लभ बीमारी विलियम्स-ब्यूरेन सिंड्रोम हो गई। इस बीमारी के कारण बच्चे को सीने में दर्द की शिकायत रहती थी। विलियम्स-ब्यूरेन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चा अपने दोस्तों के साथ खेलते हुए थक जाता था। बच्चे के परिजनों ने कई चिकित्सकों को दिखाया। बच्चे के परिजनों को जब कहीं से संतुष्टि नहीं हुई तो उसको मेरठ के मेडिकल कालेज के हृदय रोग विभाग में दिखाया गया। जहां पर मेडिकल कालेज हृदय रोग विभाग के चिकित्सकों ने बच्चे की जांच कर पाया कि उसको विलियम्स-ब्यूरेन सिंड्रोम जैसी जटिल और दुर्लभ बीमारी है।

हृदय रोग विभाग ने बताया विलियम्स-ब्यूरेन सिंड्रोम आनुवांशिक बीमारी
मेरठ मेडिकल कालेज के मीडिया प्रभारी डॉ. वीडी पाण्डेय ने बताया कि मेडिकल कालेज के हृदय रोग विभाग में बच्चे का सफल इलाज किया गया। उन्होंने बताया आठ साल का बच्चा सीने में दर्द और बहुत जल्दी थक जाने की शिकायत के साथ अपने परिजनों के साथ ह्रदय रोग विभाग की ओपीडी में डॉ. सीबी पाण्डेय से मिला। जहां पर डॉ. सीबी पाण्डेय सहायक आचार्य हृदय रोग विभाग ने बच्चे की जांच करने के बाद बताया कि उसको विलियम्स-ब्यूरेन सिंड्रोम नामक एक दुर्लभ आनुवांशिक बीमारी है।

विलियम्स-ब्यूरेन सिंड्रोम बीमारी के ये हैं लक्षण
इस बीमारी में चेहरे की विशिष्ठ आकृति, हल्की मानसिक मंदता, अजनबियों के प्रति अत्यधिक मित्रता और महाधमनी के सुप्रावाल्वुलर हिस्से की संकीर्णता शामिल है। इकोकार्डियोग्राफी से बच्चे में गम्भीर सुप्रावाल्वुलर एओर्टिक स्टेनोसिस की पुष्टि हुई। गम्भीर स्टेनोसिस के परिणामस्वरूप संकुचित खंड में नीचे की ओर रक्त का प्रवाह कम हो जाता है और हृदय पर अनुचित दबाव पड़ता है। यदि समय पर पहचान नहीं की जाती है या इलाज नहीं किया जाता है, तो रोगी में सीने में दर्द, सांस की तकलीफ, चक्कर आना और आगे चल कर दिल की विफलता (घात) के लक्षण विकसित होते हैं।

मेडिकल कालेज के हृदय रोग विभाग में ऐसे किया बीमारी का इलाज
उन्होंने बताया कि रोग के प्रारंभिक स्थिति के महत्व को पहचानते हुए, बच्चे को तत्काल इस प्रक्रिया के लिए कैथ लैब ले जाया गया। जिसमें फिमोरल आर्टरी (जांघ में एक धमनी) के माध्यम से महाधमनी के संकुचित हिस्से में एक गुब्बारा डालना और प्रभावित खंड में गुब्बारा फुलाना शामिल था। क्योंकि हृदय संकुचन (कार्डियक कॉन्ट्रेक्शन) के दौरान गुब्बारा विस्थापित हो सकता है।

एओरटिक बैलून डाइलेटेशन विधि द्वारा बिना चीरा लगाए ऑपरेशन किया
गुब्बारा फुलाने के दौरान हृदय की पंपिंग की शक्ति को कम करने के लिए हृदय को अत्यधिक उच्च हृदय गति (200-250 बीट प्रति मिनट) पर चलाना पड़ता है। इसके बाद बच्चे का इलाज एओरटिक बैलून डाइलेटेशन विधि द्वारा डॉ. सीबी पाण्डेय, डॉ. शशांक पाण्डेय एवम उनकी टीम ने बिना चीरा लगाए सफलतापूर्वक ऑपरेशन किया। बच्चा में अब कोई लक्षण नहीं हैं और उसे छुट्टी कर दी गई है।

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मेडिकल कालेज प्राचार्य डॉ. आरसी गुप्ता ने डॉ. सीबी पाण्डेय, डॉ. शशांक पाण्डेय एवम उनकी पूरी टीम को सफल ऑपरेशन के लिए बधाई दी। डॉ. गुप्ता ने यह भी बताया कि बच्चे का आपरेशन राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के अंर्तगत निःशुल्क इलाज किया गया है।