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सवा तीन साल से धरने पर बैठे हैं 150 किसान, 18 की हो चुकी है मौत

locationमेरठPublished: Sep 17, 2017 01:01:32 pm

Submitted by:

pallavi kumari

शताब्दी नगर में धरने पर बैठे किसानों ने कहा- एमडीए ने जमीन अधिग्रहण तो कर ली, लेकिन मुआवजा नहीं दिया

Up Farmers

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मेरठ. 150 से ज्यादा किसान शताब्दी नगर में चार जून 2014 से धरने पर बैठे हैं। दिन-रात सवा तीन साल से चल रहे किसानों के धरने के दौरान अभी तक 18 किसानों की मौत भी हो गर्इ है, लेकिन मुआवजा नहीं मिला। इसी आस में ये किसान सर्दी, गर्मी और बरसात में यहीं धरने पर जमे हैं। इनका कहना है कि जब तक इनको मुआवजा नहीं मिलेगा, तब तक ये यहां से नहीं उठने वाले। जिस 645 एकड़ की जमीन को एमडीए अपना कब्जा नहीं कर सका है, नर्इ अधिग्रहीत नर्इ नीति के तहत किसान मुआवजा मांग रहे हैं, नहीं देने पर उनकी जमीन वापस लौटाने की मांग है।
1987 से किसानों पर प्रहार

मेरठ विकास प्राधिकरण ने 1987 में दिल्ली रोड स्थित शताब्दी नगर आवासीय योजना के अंतर्गत 1830 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था। किसानों के विरोध करने पर पांच गांव रिठानी, अछरौंडा, काशी, कंचनपुर घोपला आैर जैनपुर की पाइप लाइनें बंद कर दी, जिससे खेती के लिए पानी बिल्कुल बंद हो गया।
एमडीए की ओर से एक ही योजना में चार अलग-अलग रेट से किसानों को शुरू में थोड़ा-थोड़ा मुआवजा दिया। जबकि एमडीए ने उंचे रेट पर लोगों को प्लॉट काटने शुरू कर दिए। किसानों को जो मुआवजा दिया। उसमें रिठानी के किसानों को 50 रुपये, अछरौंडा में 27, कंचनपुर घोपला में 15 आैर जैनपुर में 20 रुपये प्रति गज के हिसाब से मुआवजा दिया गया।
इन पांच गांवों के करीब दस हजार किसान इससे प्रभावित हुए। एमडीए ने किसानों की इस जमीन को 12 से 13 हजार रुपये प्रति मीटर के हिसाब से बेचना शुरू कर दिया। 1990 में एक रेट आैर एक मुआवजे की मांग को लेकर छोटे-छोटे धरने शुरू किए गए।
4 जून 2014 से धरना शुरू

कंचनपुर घोपला आैर जैनपुर की 645 एकड़ जमीन पर एमडीए का कब्जा नहीं है। इसका मुआवजा भी यहां के किसानों को नहीं मिला है। नर्इ अधिग्रहित नीति के अनुसार यदि प्राधिकरण पांच साल तक कब्जा नहीं लेता है तो उसका या तो वह मुआवजा देगा या जमीन वापस करेगा। इस धरने के मुखिया विजय पाल घोपला का कहना है कि इसी मांग को लेकर उनका प्रदर्शन चल रहा है। करीब 150 किसानों
ने यहां शताब्दी नगर में धरना शुरू किया। धरना शुरू होने के बाद दो साल तक खाना सामूहिक रूप से यहीं बना, लेकिन पैसे की कमी के कारण यहां बंद कर दिया फिर धरना देने वाले किसान अपने घर पर जाकर खाना खाकर धरने पर बैठ जाते हैं।
चाय अभी भी यहीं पर सबकी चाय एक साथ बनती है। धरनास्थल पर ही किसानों ने टीवी भी रख लिया है। यहां एक ही जगह पर किसानों ने अपने-अपने पंडाल बना लिए हैं। दिन-रात चलने वाले इस धरने को सवा तीन साल से उपर हो गए हैं।
धरने पर 18 की मृत्यु धरनास्थल पर बैठे किसानों की कभी हालत भी बिगड़ी। इनमें से 18 किसानों की मृत्यु हो चुकी है। इनमें से चार को हार्ट अटैक का दौरा भी पड़ा। इस धरने पर महिलाएं भी बैठी हैं। अब यहां धरने को ज्यादा समय हो गया है, तो बीच-बीच में ये बची अपनी खेती को भी देख लेते हैं। दिनभर बैठें क्या करें, तो अलग-अलग मंडली में बैठकर ये ताश खेलकर समय बिताते हैं। समय-समय पर इन्होंने प्रदर्शन भी किए, जिससे प्रशासनिक और पुलिस अफसर इन्हें शांत करते हैं। इनका कहना है कि जब तक इन्हें मुआवजा नहीं मिलता, तब तक धरना जारी रहेगा।
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