जी हां विश्व प्रसिद्ध विंध्याचल मंदिर कि व्यवस्था व देख रेख करने के लिए पिछले 65 साल से विंध्य पंडा समाज का चुनाव होता है। लेकिन खुलेआम इस चुनाव में पहले ही नो महिलाओं की नो इंट्री को बोर्ड लगा दिया जाता है। बतादें कि आजादी के बाद 1953 में विंध्य पंडा समाज नाम की संस्था का गठन किया गया। इस संस्था का कार्य मंदिर में होने वाले आरती व मंदिर कि व्यवस्था में प्रशासन को सहयोग देकर सुचारू रूप से भक्तों को दर्शन पूजन कराना होता है। लेकिन मां के दरबार की सुरक्षा के लिए होने वाले चुनाव में समाज की देवी कहलाने वाली महिलाओं का मत देने का अधिकार ही नहीं है।
फिर है 23 सितंबर को चुनाव आगामी 23 सितम्बर को एक बार फिर विंध्य पंडा समाज का चुनाव है। आश्चर्य कि बात है कि इस चुनाव में कुल 1056 मतदाता भाग लेंगे। लेकिन सब के सब पुरूष मतदाता। इस बार कुल 50 उम्मीदवार विंध्य पंडा समाज के लिए चुनाव में प्रत्याशी है। वहीं 14 प्रत्यासी विंध्य विकास परिषद के लिए खड़े है। चुनाव बाद इनमे से 19 सदस्यों को विंध्य पांडा समाज के लिए चुना जाएगा और 5 सदस्य विंध्य विकास परिषद के लिए चुना जाएगा। विंध्य पंडा समाज के लिए चुने गए इन्ही 19 सदस्यों ही अपने मे से एक अध्यक्ष और मंत्री, कोषाध्यक्ष और मन्दिर व्यवस्थापक का चुनाव करेंगे। यही टीम मंदिर पर व्यवस्था का कार्य संभालेगी।
क्या कहते हैं अध्यक्ष पत्रिका से बात करते हुए विंध्य पंडा समाज के वर्तमान अध्यक्ष राजन पाठक का कहना है कि यह व्यवस्था बहुत पुरानी है। इसमे बदलाव के लिए कभी मांग भी नहीं हुई। इसलिए सब जस का तस चल रहा है ।फिलहाल एक तरफ पंचायत चुनाव में महिलाओ को 33 प्रतिशत हिस्सेदारी दी गयी है और अब संसद में 33 प्रतिशत सीट आरक्षित करने की बात हो रही है तो वहीं विंध्याचल में पूरी चुनावी व्यवस्था एक बार फिर आधी आवादी को दूर रख कर होगा। उन्हें बिना उनका अधिकार दिए।