प्रतिनिधि उद्योग व्यापार मंडल के बैनर तले सड़कों पर उतरे व्यापारियों के अनुसार प्रदूषण विभाग उन सभी का शोषण करते हुए पीतल उद्योग से जुड़े व्यापारियों के यहां नोटिस भेज रहा है। शहर में पीतल उद्योग से प्रदूषण फैलने कि बात कही जा रही है। जबकि यह उद्योग पिछले पांच सौ सालों से कुटीर उद्योग के तौर पर शहर में स्थापित है कभी भी किसी मजदूर को प्रदूषण जनित बीमारी नहीं लगी।
व्यापारियों का कहना है कि, अगर यह व्यापार यहां से बंद हो गया तो 50 हजार से अधिक व्यापारी और इसमें
काम करने वाले भूखों मर जाएंगे। इस सभी के जीविकोपार्जन का जरिया कई पीढ़ियों से यही पीतल उद्योग है। ग्रामीण इलाकों से भी मजदूर आकर शहर में पीतल के बर्तन बनाने का काम करते हैं। प्रदेश सरकार से व्यापारियों ने पीतल उद्योग को दुबारा संजीवनी देने के लिए कुटीर उद्योग का दर्जा देने की मांग किया। प्रदर्शन कर रहे व्यपारियों ने क्लेट्रेट पहुंच कर एडीएम विजय बहादुर सिंह को पत्रक सौपा कर शहर से पीतल उद्योग को प्रदूषण के नाम पर साजिश के तहत बंद करने का आरोप लगाया।
बता दें कि, जिले कि पहचान ही उसके पीतल उद्योग के जरिये होती है। किसी जमाने मे प्रदेश में पीतल के बर्तन निर्माण के लिए जिला पहले स्थान पर था। दर्जनों पीतल उद्योग से जुड़ी मशीनें लगी हुई थी। शहर के कसरहट्टी मुहल्ले में तो हर घर मे पीतल के बर्तन बनाने का कार्य किया जाता है। मगर शासन कि उपेक्षा के कारण यह उद्योग बदहाली के कगार पर पहुंच चुका है। पीतल से जुड़े व्यापारी संजय केसरी और रूपेश कुमार बताते हैं कि, इस उद्योग को कुटीर उद्योग का दर्जा दे कर इसे बढ़ावा देने के बजाय अब प्रदूषण विभाग व्यपारियों को नोटिस थमा रहा है।
input- सुरेश सिंह