मिर्जापुर जिले के एक छोटे से गांव बरही नामक स्थान पर साल में एक बार दीवाली के बाद एकादशी वाले दीन से तीन दिवसीय बेचूबीर मेला का आयोजन किया जाता है। तीन दिवसीय मेले के दौरान छोटे से गांव में लगभग चार लाख की भीड़ से पूरा गांव पट जाता है। गांव के वीरान खेतों में चारों तरफ रोने,चीखने, चिल्लाने की अजीब आवाजें आती है। पास ही पड़ने वाली एक छोटी सी भक्सी नदी के किनारे हजारों के तादात में कपड़े पड़े हैं, जिन्हें छूने वाला कोई नहीं है।
दरअसल इस मेले में बेचूबीर और उनकी पत्नी बराही माता की समाधि स्थल पर पहुंचने से पहले शरीर को इसी नदी में स्नान कर पवित्र करना होता है। इसके बाद दो किलोमीटर दूर बेचूबीर की समाधि पर पहुंचते हैं, यहां का नजारा तो और भी अजीब है लोग खेतों मे पड़े धूलों मे लेट रहे थे। वहीं हजारों की संख्या में समाधि के बाहर मैदान में बैठी महिलाएं अपना बाल खोले-उछल कूद कर झूम रही थी। कुछ तो जोर जोर से रो रही थी और लग रहा था कि गीतों के जरिये अपना दुखडा़ सुना रही हो मगर वहां दुखड़ा सुनने वाला कोई इंसान नहीं बल्कि एक समाधि के रूप में मौजूद बेचूबीर है।
कहते हैं कि प्रेत बाधा से ग्रस्त इंसानों को यहां पर हाथ में अगरबत्ती जला कर दे दो तो वह अगरबत्ती को हाथ मे पकड़ते ही उटपटांग हरकत करने लगते हैं। मानो उनके शरीर पर उनका कोई कंट्रोल नही रहता, हालात यह हो जाता है कि पतले दुबले और रोगी महिलाओ और पुरुषों मे इतनी ताकत आ जाती है।कि जो दो चार लोग के पकड़ने के बाद काबू में आते हैं।
मान्यता के मुताबिक किसी प्रेत बाधा से ग्रस्त इंसान बेचुबीर के समाधि के करीब पहुंचते ही सुस्त हो कर गिर पड़ते है। बेचूबीर समाधि से पांच सौ मीटर दूर उनकी पत्नी बराही की समाधि है। इन्हें बेचूबीर से भी शक्तिशाली मानते है। कहते हैं कि जो भूत और प्रेत जिद्दी होते हैं, उससे ग्रस्त इंसान समाधि देख कर ही भागने लगते हैं।
बेचूबीर में लोगों को प्रसाद के रूप में चावल और जनेऊ दिया जाता है। इस अंधविश्वास के मेले में अनपढ़ ही नहीं पढ़े लिखे लोग भी आते हैं। मध्य प्रदेश के सिंगरौली से आये दिनेश का कहना है कि हमारे परिवार में लोग बेचुबीर बाबा को पचासों साल से पूजते आये हैं और मन्नत पूरी होने पर मां को बाबा के पास दर्शन कराने लाये हैं। वहीं बिहार से अपने पति के साथ आई सुनीता का कहना है कि पन्द्रह साल शादी के हो गये थे, मगर कोई संतान नही था। पिछले साल बेचुबीर धाम पर किसी के कहने पर हम दम्पत्ति दर्शन को आये और इस बार एक महीने का बेटा गोद में है।
फिलहाल आधुनिक समय मे इस अनोखे मेले में जहां एक तरफ अंधविश्वास देखने को मिलता है तो उसे दूसरी तरफ कुछ लोग उसे आस्था से भी जोड़कर देख रहे हैं। BY- SURESH SINGH