ज़िले में करीब 2200 प्राइमरी स्कूल हैं, जिनमें लाखों बच्चे पढ़ते हैं। सरकार सभी को फ्री में स्कूल ड्रेस उपलब्ध कराती है। अब तक ये ड्रेस कानपुर, लुधियाना और दिल्ली के बड़े बड़े सप्लायर्स से लिये जाते थे। पर कोरोना और लॉक डाउन के चलते बढ़ी बेरोज़गारी के संकट को देखते हुए अब स्थानीय स्तर पर ही इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करायी जा रही है। ग्रामीण इलाकों में उत्तर प्रदेश सरकार की और से चलाए जा रहे राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिलाओ को रोज़गार देकर आत्मनिर्भर बनाने का काम शुरू हुआ है। बेसिक शिक्षा विभाग प्राथमिक विद्यालय के बच्चों को निशुल्क बांटा जाने वाला स्कूल ड्रेस स्थानीय स्तर पर महिलाओं से तैयार करा रहा है।
स्वयं सहायता समूहों के ज़रिए महिलाओं को रोज़गार
मुख्य विकास अधिकारी अविनाश सिंह की पहल पर जिले के बारह ब्लाक में मौजूद स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को स्कूल ड्रेस बनाने का काम मिला है। ज़िले भर में एक साथ ड्रेस बनाने का काम शुरू हो भी हो चुका है। अब तक इन महिलाओं ने 7000 स्कूली ड्रेस बनाकर तैयार भी कर लिया है। जुलाई तक 3 लाख के करीब यूनिफॉर्म तैयार करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। ड्रेस सिलाई के काम में जुटी शारदा देवी और सरोजा देवी दोनों ही खुश हैं कि घर के पास ही उन्हें रोजगार मिल गया है।
प्रशिक्षण देकर महिलाओं को जोड़ा गया
ज़िले में कुल 8097 समूह गठित हैं, है, जिनसे 87 हज़ार 468 परिवार जुड़े हैं। स्कूली ड्रेस सिलाई के कार्य से पहले 04 महिलाओ को विशेष तौर पर प्रशिक्षण देकर इससे जोड़ा गया। इसके बाद बेसिक शिक्षा विभाग के स्कूलों से इन महिला समूहों को 19 हज़ार 809 मीटर शर्ट का कपड़ा, 8 हज़ार 607 मीटर पैन्ट और 245 मीटर शलवार का कपड़ा मिला है। इसमें से अभी में स्कूल ड्रेस के लिये 6 हज़ार 183 पीस शर्ट, 2 हज़ार 201 पीस पैन्ट, 2 हज़ार 134 पीस स्कर्ट और 60 पीस शलवार सूट तैयार हो चुका है।
दूसरे प्रांतों से लौटे कामगारों को मिला रोज़गार
न सिर्फ महिलाएं बल्कि दूसरे प्रांतों से लौटे कई हुनरमंद भी इससे जुड़कर रोज़गार कर रहे हैं। सूरत की कपड़ा फैक्ट्री में डिजाइनिंग का काम करने वाले अशोक कुमार लॉक डाउन के चलते फैक्ट्री बंद होने पर आर्थिक तंगी की वजह से वापस लौट आए। मुहिम के तहत गैपुरा स्थित जागृत प्रेणना संकुल संघ के स्वयं सहायता समूह से जुड़ कर स्कूली ड्रेस बनाने का काम कर रहे है। अशोक कहते हैं कि इससे अच्छा और क्या हो सकता है कि घर पर ही रोजगार मिल गया।
महिलाओं के बनाए ड्रेस की होगी ब्रांडिंग
सीडीओ अविनाश सिंह का कहना है कि राष्टीय आजीविका मिशन से महिलाओ के साथ ही बाहर से लौटे हुनरमंदों को रोजगार दे रहे हैं। उन्होंने कहा है कि इन महिलाओं द्वारा सिलाई कर तैयार किये गए स्कूली ड्रेस की ब्रांडिंग भी की जाएगी। ताकि स्कूल ड्रेस के मामले में ज़िला आत्मनिर्भर बने और दूसरे प्रांतों में सप्लाई भी कर सकें।
माओं को रोज़गार बेटियों को ट्रेनिंग
स्कूली बच्चों के ड्रेस सिलाई के काम में जुटी महिलाओ को घर बैठे रोजगार मिल रहा है। महिलाये हर रोज 400 से 500 सौ रूपये कमा रही हैं। सिलाई के साथ-साथ उनसे जुड़े समूहों की महिलाएं व बेटियां अगर सिलाई सीखना चाहती हैं तो उनको हम लोग सिलाई की ट्रेनिंग भी दे रहे हैं। बड़े पैमाने पर महिलाओं को रोजगार प्रदान किया जा रहा है।
By Suresh Singh