हिन्दू धर्म शास्त्रों में भी लिखा है कि जहाँ पर गंगा विंध्य पर्वत को पहली बार स्पर्श करेंगी वही माँ विंध्यवासिनी का धाम है। विंध्याचल परिक्षेत्र तीन किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। जिसे त्रिकोण कहते हैं। यह त्रिकोण तीन देवी मंदिरों से मिलकर बनता है। इसके केन्द्र में मां विंध्यवासिनी विराजमान हैं। इनके पास ही दूसरी पहाड़ी पर मां अष्टभुजा, व महाकाली निवास करती हैं।
विंध्याचल ही एकमात्र ऐसा शक्तिपीठ है, जहां देवी के संपूर्ण विग्रह के दर्शन होते है। त्रिकोण यंत्र पर स्थित यह देवी लोकहित के लिए महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती का रूप धारण करती हैं। विंध्यवासिनी माता विंध्य पर्वत पर स्थित मधु तथा कैटभ नामक असुरों का बध करने वाली अधिष्ठात्री देवी हैं। यहां पर चैत्र और शारदीय दोनों नवरात्र में देश भर से लाखों श्रद्धालु दर्शन पूजन के लिए आते है। इसकी पुष्टि श्री दुर्गा सप्तशती से भी होती है। जिसमें लिखा है कि यहां पर ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी भगवती की उपासना करते के लिए आते हैं। माँ विंध्यवासनी इन्हें मनोवांक्षित फल देती है।
यह तंत्र साधना के लिए भी प्रमुख स्थल है। जहाँ पर दूर-दूर से तंत्र के साधक आते हैं। नवरात्र के समय यह भी मान्यता है कि इन नौ दिनों में माँ मंदिर के शीर्ष पर लगे ध्वज में विराजमान रहती हैं। इसलिए नवरात्र के नौ दिन भक्त ध्वज की भी पूजा करते हैं ।
कैसे पहुंचें भक्त भक्तों को इस मंदिर में पहुंचने के लिए रेल मार्ग से विन्याचल स्टेशन उतरना होता है। प्रयागराज- मुगलसराय के बीच में यह स्टेशन स्थित है जहां से मां का धाम महज पांच सौ मीटर दूर है। हवाई यात्रा कर पहुंचने वाले भक्त लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा वाराणसी से उतरकर औंराई के रास्ते विन्ध्याचल पहुंच सकते हैं। या प्रयागराज के बंमरौली एअरपोर्ट उतरकर भी यहां पहुंच सकते हैं। प्रयागराज और वाराणसी से इस धाम की दूरी तकरीबन 65-65 किमी है। इसके अलावा बस मार्ग से आने वाले यात्री वाराणसी या प्रयागराज से औंराई आकर वहां से 20 किमी दूर विन्याचल धाम