GST के एक साल- मिर्जापुर पीतल उद्योग का बुरा हाल, 30 से 40 फीसदी बर्बाद हो गया कारोबार
व्यापारियों ने कहा, यहां के सैकडों वर्ष पुराने धंधे पर संकट गहराता जा रहा है
Published: 01 Jul 2018, 06:17 PM IST
सुरेश सिंह की रिपोर्ट...
मिर्ज़ापुर. देश विदेश में पीतल के बर्तनों के लिए प्रसिद्ध मिर्ज़ापुर का बर्तन उद्योग पर जीएसटी की मार से बंदी के कगार पर पहुंच गया है। पहले से ही बदहाल इस उद्योग पर जीएसटी टैक्स लागू होने के बाद और भी हालत खराब हो गयी। मिर्ज़ापुर में पांच सौ वर्ष पुराना पीतल उद्योग कारोबार इन दिनों बहुत ही मुश्किल दौर से गुजर रहा है। शहर कि प्रसिद्ध बर्तन मण्डी कसरहट्टी की सड़कों पर आज वह भीड़ भाड़ नही जहाँ से कभी पीतल के बर्तन देश और प्रदेश के विभिन्न इलाको में भेजे जाते थे। यहां के सैकडों वर्ष पुराने धंधे पर संकट गहराता जा रहा है।
जीएसटी लागू होने के एक साल बाद कारोबारियों के व्यापार की हकीकत जानने के लिए पत्रिका संवाददाता ने पीतल के बर्तनों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध कसरहट्टी के लोगों से बात कर उनके कारोबार की हकीकत जानने की कोशिश की। पर जो हकीकत सामने आई वो हैरान करने वाली रही। जीएसटी को लेकर सरकार के तमाम दावे फेल होते दिखे। कैमरे के सामने व्यापारियों ने साफ कहा कि हम इस कारोबार से मुख मोड़ रहे हैं। हम किसी और काम धंधे में लगकर अपनी रोटी रोजी की तलाश कर रहे हैं।
व्यापारियों के समूह ने पत्रिका से बात करते हुए कहा कि कभी इसी शहर में पॉँच हजार स्थानों पर बर्तन बनाने का काम किया जाता था। हर घरों में बर्तन बनाने के लिए भठ्ठिया थी। मगर आज वह सिकुड़ कर पॉँच सौ लोगों के हाथों में ही रह गई हैं। बेरोजगारी की मार से बेहाल परिवार पलायन करने को मजबूर है। व्यवसाय से जुड़े मजदूर भुखमरी की स्थिति में पहुंच गए हैं। पहले से ही अंतिम साँसे गिन रहे इस उद्योग को उम्मीद थी कि एक समान टैक्स प्रणाली जीएसटी लागू होने के बाद उन्हें राहत मिलेगी। मगर एक साल बाद राहत देने के बजाय जीएसटी ने बची खुची उम्मीदों पर भी ग्रहण लगा दिया।
क्या कहते हैं कारोबारी
कारोबारियों का दर्द है कि पहले जहां इन उद्योग पर सिर्फ पाँच प्रतिशत टैक्स लगता था। वहीं जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स बढ़ कर बारह प्रतिशत हो गया। इसके साथ ही पुराने पीतल के सामान(स्क्रैप )कच्चे माल पर भी टैक्स अठारह प्रतिशत लगा दिया गया। अब व्यापारी अठ्ठारह फीसदी टैक्स देकर कच्चे माल खरीदते हैं लेकिन जब उसका नया बर्तन तैयार करके बेचते हैं तो उसपर ये सिर्फ 12 फीसदी टैक्ट ले पाते हैं। जिसमें इन्हे छह फीसदी का नुकसान होता है।
अलग- अलग टैक्स से बढ़ी परेशानी
काराबारियों का कहना है कि जीएसटी के बाद एक ही सामान पर लगाए गए अलग-अलग टैक्स से परेशानी बढ़ गयी है। जबकि इससे पहले वैट में पीतल के कच्चे और तैयार माल पर सिर्फ पांच प्रतिशत का टैक्स था। पत्रिका से बात करते हुए मेटल ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष शंकर लाल कसेरा ने अपने दर्द का इजहार करते हुए कहा कि जीएसटी में आसमान पर टैक्स की दरों ने पीतल व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों के सामने मुसीबत खड़ी कर दिया है। व्यापारी को अपनी लागत निकालने के लिए तैयार सामान पर पैसा बढ़ाना पड़ता है जिससे समान महंगे हो जाने से उन्हें बाजार में बेचने में परेशानी होती है। उनका कहना है कि सरकार को पीतल व्यवसाय से जुड़े व्यापार को बचाने के लिए जीएसटी के टैक्स स्लैब दरों को कम करना चाहिये। अध्यक्ष ने साफ कहा कि जीएसटी लगने के एक साल के बाद हमारे पीतल बर्तन उद्योग में 30 से 40 फीसदी कि गिरावट आई है। वहीं पीतल व्यवसायी हरिओम सिंह का कहना है कि जीएसटी कि वजह से इस साल व्यापार में घाटा उठाना पड़ रहा है। पीतल उद्योग के लिए जीएसटी उतना फादेमंद नहीं हुआ। जबकि यह उद्योग पहले से ही यहां बदहाली के दौर में चल रहा है। व्यापार मंडल एसोसिएशन के प्रदेश महामंत्री रविन्द्र जायसवाल का कहना है कि व्यापारी जीएसटी में टैक्स के असंतुलन से परेशान है। जिसकी वहज से व्यापार करने में दिक्कत हो रही।
ई- बिल ने भी बढ़ाई समस्या
दीपक चौधरी के अनुसार पीतल और मेटल व्यवसाय के लिए ई- बिल भी सबसे बड़ी समस्या है सामान बाहर जाने के लिए ट्रकों पर लदा रहता है। मगर बिल नहीं निकलता है। उनका कहना था कि दो लाख रुपये तक के सामान पर व्यापारियों को छूट मिलनी चाहिए। मौके पर मौजूद कृष्ण कशेरा उदय गुप्ता, दीपक चौधरी, रविन्द्र जायसवाल, सुबोध और श्याम ने भी जीएसटी टैक्स स्लैब पर सवाल उठाया। बतादें कि मिर्जापुर में मुख्य रुप से पीतल के भारी बर्तन लोटे, गगरा, हंडा, परात, थाल, पतीला, घंटा, कलछुल, थाली आदि बनाए जाते हैं।
ब्रिटिश गजेटियर में भी है
व्यापारियों ने बताया कि 1868 के ब्रिटिश गजेटियर में जिले के गौरवशाली पीतल के व्यापार के बारे में जिक्र था। बताया जाता है कि उस दौरान यहां से जल मार्ग पीतल के बने बर्तन और सामान देश में बिहार, झरखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मध्य प्रदेश के साथ ही जल मार्ग से रंगून तक इसकी सप्लाई होती है।
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