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सपा के खाते में आई मिर्जापुर लोकसभा सीट, मगर इस बार गठबंधन की राह नहीं है आसान

locationमिर्जापुरPublished: Feb 22, 2019 03:39:38 pm

Submitted by:

sarveshwari Mishra

सपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती मिर्ज़ापुर संसदीय सीट

Mayawati

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मिर्ज़ापुर. सपा और बसपा के महागठबंधन में मिर्ज़ापुर संसदीय सीट सपा के खाते में जाने के बाद राजनैतिक कयासों का दौर खत्म हो गया है। पत्रिका ने सबसे पहले ही 21 जनवरी 2018 को लगी खबर में सम्भावना जताया था कि यह सीट सपा के खाते में जा रही है। फिलहाल गठबंधन के बाद सपा की राह उतनी भी आसान नहीं जितनी गठबंधन के बाद उनके नेता सोच रहे हैं। सपा की गुटबाजी खत्मकर अपने परंपरागत कुर्मी मतों को अपने पाले में लाना और बिंद समाज को मनाना सपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती मिर्ज़ापुर संसदीय सीट पूर्वांचल के सबसे हाई प्रोफाइल सीट में से एक है। सपा और बसपा गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में गयी है। इससे पहले भी सपा ने यह सीट अपने दम पर चार बार जीत चुकी है।

राजनैतिक रूप से सपा इस सीट पर हमेसा ही मजबूत रही है। कुर्मी,यादव ,मुसलमान और ओबीसी की कुछ छोटी जातियों मिला कर सपा ने इस संसदीय सीट पर मजबूत गठजोड़ बना कर भाजपा और बसपा को टक्कर दे कर जीत हासिल करती रही है। खास बात यह है कि इस सीट पर सपा के खाते में पहली बार जीत दिलाने का श्रेय दस्यु सुंदरी फूलन देवी को जाता है। लोक सभा चुनाव 1996 में सपा ने उन्हें अपना प्रत्यासी बनाकर भेजा वह भारी बहुमत से जीत कर लोक सभा पहुंची। उनके बाद तो सपा हर चुनाव में दिन पर दिन मजबूत होती गयी। हालांकि पिछले 2014 के लोक सभा चुनाव में सपा को जबरजस्त झटका लगा पार्टी इस चुनाव में कांग्रेस से भी नीचे चौथे स्थान पर पहुंच गई थी। उसका कारण चुनाव में मोदी लहर के साथ साथ सपा के परंपरागत कुर्मी और ओबीसी मतों का भाजपा और अपना दल के खाते में जाना बताया जा रहा है। सपा की राह आसान नहीं।

फिलहाल सपा और बसपा गठबंधन के बाद इस बार सपा को मिली इस सीट में उसकी राह इतनी आसान भी नहीं है। सपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती बसपा के मतों को अपने साथ ट्रांसफर करना है। जिसके लिए उन्हें चुनावी अधिसूचना से पहले चुनाव में प्रत्यासी की घोषणा करनी पड़ेगी।ताकि सपा प्रत्यासी को दोनो दलों के कार्यकर्ताओं के एक जुट कर मत दाताओं के बीच पहुचा जा सकते। इसके अलावा कई गुटों में बटी सपा में गुटबाजी को खत्म करना कर चुनाव में एक साथ उतरना भी सबसे बड़ी चुनौती है। वही चुनाव से पहले सपा के सामने बिंद मतों को साधने की भी चुनौती होगी होगी।क्यो की बसपा ने चुनाव से पहले मझवां विधानसभा से तीन बार विधायक रहे रमेश बिंद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।रमेश बिंद का मझवां इलाके के लगभग 60 हजार से अधिक बिंद मतों अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है। वही सपा को अपने पुराने मजबूत वोट बैंक के रूप में रहे कुर्मी मतों को भी वापस सपा में के पाले में लाने की चुनौती भी होगी। हालांकि यह काम कुछ हद तक चुनौती पूर्ण दिखाई दे रहा है।क्यो की इस संसदीय सीट पर लगभग 3 लाख से अधिक कुर्मी मतदाताओ में अपना दल(एस) की नेता अनुप्रिया पटेल और आशीष पटेल की मजबूत पकड़ है।2014 के चुनाव के बाद से कुर्मी मतदाता अनुप्रिया पटेल को नेता के रूप में स्वीकार कर लिया है।अभी भी वह भाजपा और अपना दल(एस) गठबंधन के साथ दिखाई पड़ रहा है। फिलहाल सपा से जुड़े राजनीति सूत्रों का कहना है कि पार्टी हाई कमान इन चुनौतियों को समझ भी रहा है। इसलिए इस सीट पर किसी बाहरी मजबूत कुर्मी प्रत्यासी को भी पार्टी टिकट दे कर उन्हें चुनावी मैदान में उतार सकती है।जिसका प्रभाव इस सीट के साथ साथ दूसरी भी सीटों पर पड़े।
BY- Suresh Singh
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