समाजवादी पार्टी ने पहली बार 1996 के लोकसभा चुनाव में फूलन देवी को प्रत्याशी बनाया। फूलन देवी 2 लाख 97 हजार 998 वोट पा कर भाजपा के वीरेंद्र सिंह को हराकर पहली बार जीत हासिल की। हालांकि मध्यवधी चुनाव हुआ तो सपा हार गयी। पर इसके बाद 1999 में फूलन देवी फिर सपा के टिकट पर जीत गयीं। फूलन की हत्या के बाद 2002 में रामरती बिंद जीत गए और तीसरी बार यह सीट सपा के खाते में चली गयी। सपा और बसपा के बीच कांटे की टक्कर इसी मध्यवधी चुनाव से देखने को मिला।
बसपा पहली बार इस सीट पर 2004 में जीती। पार्टी प्रत्याशी नरेंद्र कुशवाहा ने 2, 01, 942 वोट पाकर जीत हासिल किया। पर एक निजी चैनल के स्टिंग आपरेशन में फंसने के बाद उन्हें लोकसभा से बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद मध्यावधि चुनाव में बसपा के रमेश दुबे ने यह सीट बसपा के खाते में ही रही। 2007 में हुए लोकसभा चुनाव ने सपा ने चौथी बार सीट पर कब्जा किया। सपा के बाल कुमार पटेल ने 2 लाख 18 हजार 898 वोट पाकर बसपा से सीट छीन लिया।
सपा जहां दो बार इस सीट पर दूसरे स्थान पर रही तो बसपा तीन बार। लिहाजा मिर्जापुर पर हमेशा से ही सपा का पलड़ा भारी रहा है। अब देखने वाली बात यह होगी कि सपा और बसपा के गठबंधन में यह सीट किसके खाते में जाती है। तैयारी की बात करें तो सपा और बसपा दोनो दलों से कई प्रत्याशी चुनाव की तैयारी कर रहे है।बसपा की तरफ से जहां पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्रा, नरेंद्र कुशवाहा और दूसरे स्थान पर रहने वाली समुद्रा बिंद टिकट पाने की रेस में आगे है। वहीं सपा की तरफ से पूर्व राज्यमंत्री कैलाश चौरसिया भी मजबूत दावेदार हो सकते हैं। इससे पहले वह सपा के टिकट पर वाराणसी से पीएम नरेंद मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं, जहां वो अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे।