सपा इस बदली रणनीति में यादव मुस्लिम के साथ अनुसूचित जनजाति के वोटरों को भी अपने साथ जोड़कर पार्टी के राजनैतिक और जातीय समीकरण को और बड़ा करने की कवायद में है। सपा का मुकाबला यहां भाजपा और अपना दल एस के मजबूत गठबंधन से है, जिनमें खुद जिले के सबसे बड़े पटेल वोट बैंक को अपने पाले में खींचने की होड़ लगी हुई है। सपा का प्लान इससे इतर दिखायी दे रहा है। राजनीतिक पंडितों की मानें तो मिर्जापुर में अपना दल एस-भाजपा गठबंधन को चुनौती देने के लिये समाजवादी पार्टी नया समीकरण बना रही है।
जातीय समीकरण साधकर अपना दल और बीजेपी गठबंधन ने 2014 में पहले लोकसभा चुनाव में फिर 2017 के विधानसभा चुनाव में जिले में परचम लहराया। समाजवादी पार्टी के लिये इस गठबंधन का समीकरण 2019 के लोकसभा चुनाव में भी नुकसानदेह साबित हुआ। कहा जा रहा है कि ऐसे में अखिलेश यादव एक बार फिर जिले में पिता का दांव आजमाना चाहते हैं। मुलायम सिंह यादव ने मिर्जापुर में फूलन देवी को मैदान में उतारकर एससी एसटी और पिछड़े वोटरों की गोलबंदी कर भाजपा को परास्त किया था।
अब देखना होगा कि सपा अपनी इस कवायद में कितनी कामयाब हो पाती है, क्योंकि नए जिलाध्यक्ष के मनोनयन के बाद पद की चाह रखने वाले यादव नेताओं की खामोशी के भी मायने निकाले जा रहे हैं। ऐसे में सपा को पार्टी में गुटबंदी जैसी स्थिति पैदा होने से रोकना एक बड़ी चुनौती होगी।
By Suresh Singh