बतादें कि इससे पहले चारो विद्यालय अलग-अलग चलते थे। मगर इन्हें अब एक ही बिल्डिंग में लाकर संस्कृति की एक बड़े महाविद्यालय की नींव रखी गई है। कक्षा 8 से लेकर पोस्टग्रेजुएशन तक चलने वाले इस महाविद्यालय में कुल 203 छात्र पढ़ते है। पिछले कई सरकारो में उपेक्षा का शिकार रहे इस महाविद्यालय की तस्बीरे भाजपा की योगी सरकार में भी नही बदली।हालत यह है कि कक्षा आठ से लेकर पोस्टग्रेजुएट तक के छात्रो को पढ़ाने के लिए एक मात्र अध्यापक की नियुक्ति की गई है।जो इन छात्रो को पढ़ाने के अलावा इस महाविद्यालय का प्रधानाचार्य भी है।
महाविद्यालय के प्रशासनिक दायित्व निभाने की जिम्मेदारियां भी इन्ही के कंधों पर है।महाविद्यालय की हालत इतनी खराब है कि इक्का दुक्का छात्रो को छोड़ कर कोई भी छात्र यहाँ पढ़ने नही आता।छात्र महाविद्यालय में एडमिशन करा कर सिर्फ परीक्षा के समय ही आते है। संस्कृत की डिग्री लेकर चले जाते है। पत्रिका कि टीम जब महाविद्यालय में पहुची तो वहां सिर्फ तीन छात्र ही पढ़ाई करते हुए मिले।महाविद्यालय की दुर्व्यवस्था पर खुद यहां के प्रधानाचार्य नरेंद्र पांडेय भी दुःखी है। उनके अनुसार 10 वर्ष पहले तक यह महाविद्यालय अच्छा चल रहा था।
मगर, धीरे-धीरे शिक्षकों की कमी के कारण विद्यालय की पढ़ाई का माहौल खराब होता गया। आज महाविद्यालय सिर्फ खानापूर्ति के लिए चलाया जा रहा है। नरेंद्र पांडे ने खुद कई बार अधिकारियों से शिक्षकों की नियुक्ति करने के लिए पत्र भी लिखा मगर अभी तक किसी पत्र का जबाब नही आया। महाविद्यालय को संस्कृति भाषा को बढ़ावा देने और संस्कृति भाषा को जन- जन में लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से दशकों पहले बना यह महाविद्यालय अब सिर्फ विद्वानों की डिग्री बाटने का केंद्र भर रह गया है। भारतीय संस्कृति के इस महाविद्यालय आज पूरी तरह से खत्म होने के कगार पर है।
इनपुट- सुरेश सिंह (मिर्जापुर)