होती है विशेष तैयारी
आदि शक्ति मां विंध्यवासिनी धाम में मकर संक्रांति (खिचड़ी) के दिन होने वाले ‘बुलबुल दंगल’ के लिए विशेष तैयारी की जाती है। दंगल के लिए एक महीने पहले लड़ाई के लिए जंगल से पकड़कर या बहेलियों से खरीदकर बुलबुल लाया जाता है और उन्हें मैदान में उतारने से पहले इनको खिला-पिलाकर मजबूत बनाया जाता है। बुलबुल को लड़ाने वाले इसे काफी पौष्टिक खाना खिलाते हैं। लड़ाई के मैदान में अपने पठ्ठे की जीत को सुनिश्चित करने के लिए एक महीने पहले से इनका खूब ख्याल रखा जाता है।
आदि शक्ति मां विंध्यवासिनी धाम में मकर संक्रांति (खिचड़ी) के दिन होने वाले ‘बुलबुल दंगल’ के लिए विशेष तैयारी की जाती है। दंगल के लिए एक महीने पहले लड़ाई के लिए जंगल से पकड़कर या बहेलियों से खरीदकर बुलबुल लाया जाता है और उन्हें मैदान में उतारने से पहले इनको खिला-पिलाकर मजबूत बनाया जाता है। बुलबुल को लड़ाने वाले इसे काफी पौष्टिक खाना खिलाते हैं। लड़ाई के मैदान में अपने पठ्ठे की जीत को सुनिश्चित करने के लिए एक महीने पहले से इनका खूब ख्याल रखा जाता है।
मकर संक्रांति के दिन होने वाले विशेष दंगल से पहले बुलबुल पहलवानों की कड़ी परीक्षा होती है। इसके लिए इन लड़ाके बुलबुलों को छोटे-छोटे दंगल से होकर इम्तिहान पास करना पड़ता है। बुलबुल मालिक अश्वनी उपाध्याय का कहना है कि फाइनल दंगल में जीतने वाले बुलबुल को विशेष इनाम से सम्मानित किया जाता है। इस दौरान इन लड़ाके बुलबुलों के साथ कोई ज्यादती नहीं की जाती है। दंगल के बाद इन पठ्ठों को वापस जंगल में उड़ा दिया जाता है।
तोखी होती है सबसे लड़ाकू प्रजाति
बुलबुल के मालिक के अनुसार बाजार में कई प्रजातियों के बुलबुल बिकते हैं, जिसमें तोखी, डोमा, बेर्रा मुख्य प्रजातियां खास हैं। इनमें सबसे लड़ाकू प्रजाति तोखी होती है।
बुलबुल दंगल का धार्मिक महत्व
मकर संक्रांति पर बुलबुलों की लड़ाई केवल मनोरंजन मात्र नहीं है। हिन्दू धर्म में ‘बुलबुल दंगल’ का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस लड़ाई की शुरुआत भगवान विष्णु के समय हुई थी। हिन्दू धर्म के अनुसार विष्णु परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक रूप हैं। पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। बुलबुल की लड़ाई सदियों पुरानी प्रथा है और भगवान विष्णु की पूजा बुलबुल की लड़ाई से शुरू होती है।