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सामान्य वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण: DMK की याचिका पर मद्रास HC ने केंद्र सरकार को भेजा नोटिस

locationनई दिल्लीPublished: Jan 21, 2019 04:20:22 pm

Submitted by:

Anil Kumar

मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है और गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने की व्यवस्था को लेकर 18 फरवरी तक अपना जवाब दाखिल करने को कहा है।

सामान्य वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण: DMK की याचिका पर मद्रास HC ने केंद्र सरकार को भेजा नोटिस

सामान्य वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण: DMK की याचिका पर मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को भेजा नोटिस

चेन्नई। केंद्र की मोदी सरकार ने शीतकालीन सत्र में एक ऐतिहासिक बिल को पास कराते हुए सामान्य वर्ग के गरीब परिवारों को नौकरी और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की। इसके बाद से देशभर में सियासत गरमा गई। इसी को लेकर डीएमके ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है और 18 फरवरी तक इस मामले पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। बता दें कि डीएमके के संगठन महासचिव आरएस भाराथी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका में भाराथी ने केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती दी है। इसके अलावा गैरसरकारी संगठन यूथ फॉर इक्वैलिटी और कौशल कांत मिश्रा ने भी 124वें संविधान संशोधन विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। याचिका में इस विधेयक को निरस्त करने का अनुरोध किया गया है।

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याचिका में सरकार के फैसले को किया गया है चैलेंज

आपको बता दें कि याचिका में डॉ. आंबेडकर का हवाला देते हुए कहा गया है कि आरक्षण की अवधारणा स्वंय किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति के संदर्भ में नहीं है, बल्कि उस समुदाय के संदर्भ में है जिससे वह जुड़ा हुआ है। उस समुदाय को शिक्षा और रोजगार के साथ जोड़ना इसका मूल मकसद था। याचिका में कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं को केंद्रित करते हुए सरकार के फैसले को चैलेंज किया गया है। आरक्षण की अवधारणा समानता के लिए अपवाद को छोड़ दें तो यह केवल तभी उचित है जब इसका इस्तेमाल भेदभाव और उत्पीड़न का सामना करने वाले समुदायों ओबीसी, एससी,एसटी के उत्थान के उद्देश्य से लाया जाता हो। आगे यह भी कहा गया है कि अकेले आर्थिक मापदंड आरक्षण देने का आधार नहीं हो सकता है क्योंकि आरक्षण गरीबी उन्मूलन योजना नहीं है। इसमें आगे यह भी कहा गया है कि एम. नागराज केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षण में 50% की सीमा भी मूल संरचना का हिस्सा है। इसके अलावा यह भी संदर्भ दिया गया है कि आई.आर कोएलो केस में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि संविधान की धारा 15 के साथ-साथ धारा 14,19 और 21 ‘संविधान की मूल धारा’ है जिसे कभी भी निरस्त नहीं किया जा सकता है।

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सामान्य वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था

आपको बता दें कि मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े गरीब परिवारों को शिक्षा और नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया है। इस बिल को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की भी मंजूरी मिल चुकी है। जिसके साथ ही यह कानून बन चुका है। संसद ने 124 संविधान संशोधन करते हुए 10 फीसदी आरक्षण की यह व्यवस्था की है। सरकार के इस फैसले को विरोधी दल एक राजनीतिक ऐजेंडा मान रहे हैं और चुनाव से पहले बिल की टाइमिंग पर सवाल उठाए थे। आपको बता दें कि सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण का यह प्रावधान अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों को मिलने वाले 50 फीसदी आरक्षण से अलग है। केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया कि संविधान (124वां संशोधन) अधिनियम, 2019 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है। इसके जरिए संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन किया गया है। साथ ही एक प्रावधान यह भी जोड़ा गया है कि आर्थिक रूप से कमजोर किसी तबके के लोगों की तरक्की के लिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देता है। यह विशेष प्रावधान निजी शैक्षणिक संस्थानों सहित शिक्षण संस्थानों, चाहे सरकार द्वारा सहायता प्राप्त हो या न हो, में उनके दाखिले से जुड़ा है। हालांकि यह प्रावधान अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों पर लागू नहीं होगा।

 

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