
नई दिल्ली: सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमों के तेजी से निपटारे के लिए 12 विशेष कोर्ट बनाने के केंद्र प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ये कोर्ट एक मार्च 2018 से काम करना शुरू कर दें । कोर्ट ने कहा कि विशेष कोर्ट की संख्या बढ़ाने जैसे मसलों पर आगे विचार करेंगे । इस मामले पर अगली सुनवाई 7 मार्च को होगी । ये 12 विशेष कोर्ट सात राज्यों में स्थापित किए जाएंगे ।
दस्तावेज जुटाने के लिए दो महीने का वक्त
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को राज्यों को तुरंत 7.80 करोड़ रुपए का फंड वितरित करने का निर्देश दिया है । कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकारें हाईकोर्ट की सलाह पर विशेष कोर्ट का गठन करेंगी और हाईकोर्ट ऐसे मामलों को स्पेशल कोर्ट में भेजेगा। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों का ब्यौरा इकट्ठा करने के लिए दो माह का वक्त दिया । गुरुवार को याचिकाकर्ता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने केंद्र सरकार के हलफनामे के जवाब में दाखिल हलफनामे में मांग कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को ये निर्देश दे की वो सभी सांसदों और विधायकों से उनके लंबित आपराधिक केसों का ब्यौरा तलब करे। 90 दिनों के भीतर सभी ये ब्यौरा चुनाव आयोग को दें और जो ब्यौरा ना दे उसके चुनाव को शून्य करार दिया जाए ।
फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह केस निपटाए जाएंगे
पिछले 12 दिसंबर को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि वो सांसदों और विधायकों के खिलाफ चल रहे मामलों के ट्रायल के लिए 12 स्पेशल कोर्ट स्थापित करने का फैसला किया है। एक नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि वे सांसदों और विधायकों के खिलाफ चल रहे मामलों के ट्रायल के लिए देश भर में स्पेशल कोर्ट स्थापित करने पर विचार करें । ये कोर्ट्स फास्ट ट्रैक कोर्ट की तरह पांच सालों के भीतर नेताओं के खिलाफ चल रहे मामलों को निपटाएं । पिछले 1 नवंबर को केंद्र सरकार ने सजायाफ्ता जनप्रतिनिधियों के आजीवन चुनाव लड़ने पर रोक लगाने के मामले पर अपना कोई भी रुख बताने से इनकार कर दिया था । केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि अभी इस मसले पर विचार चल रहा है । जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को छह हफ्ते में इस मसले पर अपना रुख तय करने का निर्देश दिया था । सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि 1581 विधायकों पर आपराधिक मामले चल रहे हैं । उनमें से कितने एक साल में खत्म हुए और उसमें कितने को सजा मिली या बरी हुए।
चुनाव आयोग ने आजीवन रोक लगाने की मांग की
वहीं निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था है कि सजायाफ्ता जनप्रतिनिधियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन रोक लगनी चाहिए । आयोग ने कहा था कि वो इस बारे में कानून में संशोधन करने के लिए सरकार को भी लिख चुकी है । तब कोर्ट ने कहा था कि आप हमें बताइए कि ऐसा आपने कब लिखा । निर्वाचन आयोग ने कहा था कि आयोग ने 1977 में जनप्रतिनिधियों की अयोग्यता की समय सीमा घटाई थी ।
एक साल के भीतर हो निपटारा
सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें मांग की गई है कि एक साल के अंदर विधायिका, कार्यपालिका औरन्यायपालिका से जुड़े लोगों के खिलाफ आपराधिक मामलों का निपटारा हो और एक बार दोषी होने पर उन पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाए । उन्होंने मांग की है कि ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने,राजनीतिक दल का गठन करने और पदाधिकारी बनने पर रोक लगाई जाए । याचिका में ये भी मांग की गई है कि चुनाव आयोग, विधि आयोग और नेशनल कमीशन टू रिव्यू द वर्किंग ऑफ द कांस्टीट्यूशन द्वारा सुझाए गए महत्वपूर्ण चुनाव सुधारों को लागू करवाने का निर्देश केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को दिया जाए । याचिका में ये भी मांग की गई है कि विधायिका की सदस्यता के लिए न्यूनतम योग्यता और अधिकतम आयु सीमा तय की जाए ।
Published on:
14 Dec 2017 07:46 pm
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