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1973 – बाघों को विलुप्त होने से बचाने के लिए 1 अप्रेल को शुरू हुआ प्रोजेक्ट टाइगर

भारत सरकार ने 1 अप्रेल, 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर (संरक्षण कार्यक्रम) की शुरुआत उत्तराखंड के कौरबेट राष्ट्रीय पार्क से की गई

Aug 11, 2017 / 07:39 am

सुनील शर्मा

1973 – project tiger

देश से बाघों को विलुप्त होने से बचाने के लिए भारत सरकार ने 1 अप्रेल, 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर (संरक्षण कार्यक्रम) की शुरुआत उत्तराखंड के कौरबेट राष्ट्रीय पार्क से की गई। इसका मकसद बंगाल टाइगर की आबादी को विलुप्त होने से बचाने के साथ ही उनके प्राकृतिक स्थान पर इसे बढ़ाना भी था। परियोजना का मकसद यह भी था कि इनकी आबादी को बढ़ाने के साथ ही लोगों को इनके प्रति शिक्षित भी करना था।
सरकार ने इनके प्राकृतिक स्थानों को बढ़ाने के लिए विशेष भी गठित किया गया। बाघ को शिकारियों से बचाने के लिए टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स का भी गठन किया गया। साथ ही इंसानों और बाघों के बीच होने वाले संघर्ष को कम से कम किया जाए, इसके लिए जंगलों के पास बसे गांवों में रहने वाले लोगों को दूसरी जगह पुनर्वास किया गया।
यही नहीं, बाघ अभयारण्यों के अंदर अपराधों में अंकुश लगाया जाए, इसके लिए सजा को और कड़ा किया गया। वर्ष 2006 में जारी की गई बाघों की गणना के अनुसार, इनकी आबादी 1411 थी जो 20 जनवरी, 2015 को जारी एक और जनगणना के अनुसार इनकी आबादी बढ़कर 2 हजार 226 हो गई है। बाघ परियोजना का मुख्य उद्देश्य उन कारकों को कम करना है जिससे बाघों के प्राकृतिक आवासों को घटने से रोका जा सके। जिन आवासों को नुकसान पहुंच चुका है, उन्हें सुधारा जाए ताकि पारिस्थितिकी तंत्र को ज्यादा से ज्यादा वापस पाया जा सके।
साथ ही आर्थिक, विज्ञान संबंधी, सौंदर्यात्मक, सांस्कृतिक पर्यावरणीय मान्यताओं के लिए बाघों की आबादी को बढ़ाया जा सके। 20वीं सदी की शुरुआत में भारतीय बाघों की संख्या आंकलन 20 हजार से 40 हजार के बीच थी। 1972 में पहली बार बाघों की गई जनगणना में पता चला कि देश में करीब 1800 ही बाघ हैं।
सरकार के प्रयासों के बाद देश में एक बार फिर से हालात सुधरने शुरु हुए। आज देश में कई बाघ अभ्यारण्य चल रहे हैं। जिनमें सैकड़ों बाघ सुरक्षित रूप से विचरते हैं।

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