3 मामले जुड़े हैं 2 जी स्पेक्ट्रम से आपको बता दें कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से जुड़े तीन मामलों में सीबीआई की विशेष अदालत में आज सुनवाई हुई। यूपीए सरकार में हुए इस घोटाले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और डीएमके की नेता कनिमोझी समेत कई हाई प्रोफाइल उद्योगपति आरोपी हैं। इस मामले में पटियाला हाउस कोर्ट के विशेष न्यायाधीश ओ.पी. सैनी फैसला सुनाएंगे। आपको बता दें कि 2जी स्पैक्ट्रम घोटाला यूपीए सरकार में हुआ था और इसकी वजह से मनमोहन सिंह की सरकार हिल गई थी।
सीबीआई के पास 2 और ईडी के पास है एक केस
इस मामले की सुनवाई करने वाली सीबीआई की विशेष अदालत तीन मामलों में फैसला सुनाएगी। इसमें दो केस सीबीआई के हैं और एक केस प्रवर्तन निदेशालय का है। सात नवंबर को अदालत ने इस केस का फैसला सुनाने के लिए आज की तारीख तय की थी।
इस मामले की सुनवाई करने वाली सीबीआई की विशेष अदालत तीन मामलों में फैसला सुनाएगी। इसमें दो केस सीबीआई के हैं और एक केस प्रवर्तन निदेशालय का है। सात नवंबर को अदालत ने इस केस का फैसला सुनाने के लिए आज की तारीख तय की थी।
ये हस्तियां हैं आरोपी
सीबीआई के पास जो दो केस हैं उसमें पहले केस में ए राजा और कनिमोझी समेत पूर्व टेलीकॉम सेक्रेटरी सिद्धार्थ बेहुरा और राजा के पूर्व निजी सचिव भी इस मामले में आरोपी हैं। इनके साथ स्वान टेलीकॉम के प्रमोटर्स, यूनिटेक के प्रबंध निदेशक, रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह के तीन सीनियर अधिकारी और कलैग्नर टीवी के निदेशकों पर भी आरोपी हैं।
सीबीआई के पास जो दो केस हैं उसमें पहले केस में ए राजा और कनिमोझी समेत पूर्व टेलीकॉम सेक्रेटरी सिद्धार्थ बेहुरा और राजा के पूर्व निजी सचिव भी इस मामले में आरोपी हैं। इनके साथ स्वान टेलीकॉम के प्रमोटर्स, यूनिटेक के प्रबंध निदेशक, रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी समूह के तीन सीनियर अधिकारी और कलैग्नर टीवी के निदेशकों पर भी आरोपी हैं।
क्या है 2जी घोटाला
केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार के अंतगर्त ये घोटाला साल 2010 में हुआ था। ये घोटाला उस वक्त सामने आया, जब भारत के महालेखाकार और नियंत्रक ने अपनी एक रिपोर्ट में 2008 में किए गए स्पेक्ट्रम आवंटन पर सवाल खड़े किए थे। घोटाले में कंपनियों को नीलामी की बजाए पहले आओ और पहले पाओ की नीति पर लाइसेंस दिए गए थे, जिसमें भारत के महालेखाकार और नियंत्रक के अनुसार सरकारी खजाने को एक लाख 76 हजार करोड़ रूपयों का नुकसान हुआ था।
केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार के अंतगर्त ये घोटाला साल 2010 में हुआ था। ये घोटाला उस वक्त सामने आया, जब भारत के महालेखाकार और नियंत्रक ने अपनी एक रिपोर्ट में 2008 में किए गए स्पेक्ट्रम आवंटन पर सवाल खड़े किए थे। घोटाले में कंपनियों को नीलामी की बजाए पहले आओ और पहले पाओ की नीति पर लाइसेंस दिए गए थे, जिसमें भारत के महालेखाकार और नियंत्रक के अनुसार सरकारी खजाने को एक लाख 76 हजार करोड़ रूपयों का नुकसान हुआ था।
इसमें आरोप था कि अगर लाइसेंस नीलामी के आधार पर होते तो खजाने को कम से कम एक लाख 76 हजार करोड़ रूपयों और प्राप्त हो सकते थे।