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ट्रिपल तलाक: AIMPLB ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का किया सम्मान, रिव्यू पिटिशन पर नहीं की चर्चा

Published: Sep 11, 2017 11:55:00 am

Submitted by:

Chandra Prakash

AIMPLB के सदस्य कमाल फारूकी ने कहा कि एक तीन तलाक पाप है, लेकिन ये वैध है।

AIMPLB
भोपाल/नई दिल्ली: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने रविवार को मध्यप्रदेश में एक कार्यकारी समिति की बैठक आयोजित की। इस बैठक में बोर्ड ने तीन तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आगे की रणनीति बनाई। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान किया है। साथ ही इस मीटिंग में कोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर करने को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि शरीयत में भी किसी प्रकार का कोई दखल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
10 सदस्यीय कमेटी करेगी फैसले की जांच
एक दिवसीय बैठक के समाप्त होने के बाद बोर्ड ने फिलाहल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अध्ययन के लिए कानूनी जानकारों की 10 सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया है। ये समित इस बात का फैसला करेगी कि कोर्ट का फैसला शरीयत में किसी प्रकार का कोई दखल तो नहीं है। इस कार्यकारी मीटिंग में पर्सनल लॉ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद मामले पर भी चर्चा की। बाबरी मस्जिद मामले पर बोर्ड का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट किसी खास पार्टी के सदस्य के कहने पर जल्दबाजी कर रहा है।
बोर्ड ने केंद्र सरकार पर साधा निशाना
पर्सनल लॉ मीटिंग में तीन तलाक को लेकर पहली बैठक में ये फैसला लिया गया कि तीन तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा दाखिल किया गया हलफनामा मुस्लिम पर्सनल लॉ पर हमला है और इसे मुस्लिम समुदाय धार्मिक स्वतंत्रता का हनन मानता है।
‘तीन तलाक पाप है, लेकिन वैध है’
मीटिंग खत्म होने के बाद प्रेस वार्ता में बोर्ड के सदस्य कमाल फारूकी ने कहा कि एक साथ तीन तलाक पाप है, लेकिन वैध है। उन्होंने कहा कि बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे पर नाखुशी जाहिर की। कमाल फारूकी ने कहा कि यह मुस्लिम पर्सनल लॉ पर हमला है। केंद्र सरकार संविधान में दी गई धार्मिक स्वतंत्रता का हनन कर रही है और मुस्लिम समुदाय इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। बैठक में बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना रब्बे हाशमी नदवी, महासचिव मौलाना मोहम्मद वली रहमानी, उपाध्यक्ष डॉ. सैयद कल्बे सादिक, मोहम्मद सलीम कासमी, सचिव जफरयाब जिलानी, सांसद ओवैसी सहित बोर्ड की वर्किंग कमेटी के लगभग 45 सदस्य मौजूद थे।
औवेसी ने निभाई अहम भूमिका
बैठक में मौजूद ओवैसी ने करीब 2 घंटे तक कानून के जानकारों के साथ बातचीत कर इस फैसले का सार तैयार किया। बाद में इसे सभी सदस्यों को बांटा गया। बोर्ड के फैसले में कहा गया है कि एक साथ तीन तलाक के खिलाफ बोर्ड पहले भी प्रस्ताव पारित कर चुका है। अब इसे लेकर बड़े पैमाने पर सामाजिक सुधार कार्यक्रम चलाया जाएगा और एक साथ तीन तलाक देने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा।
1400 साल पुरानी प्रथा को SC ने किया था खत्म 
आपको बता दें कि पिछले महीने तीन तलाक को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इस प्रथा को खत्म कर दिया था और केंद्र सरकार को इसपर कानून बनाने के लिए 6 महीने का वक्त दिया था। 3 तलाक की प्रथा मुसलमानों में 1400 सालों से चली आ रही है। कोर्ट ने तीन-दो के बहुमत से फैसला देते हुए कहा था कि एक साथ तीन तलाक संविधान में दिए गए बराबरी के अधिकार का हनन है। तलाक-ए-बिद्दत इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है। इसलिए इसे धार्मिक आजादी के तहत संरक्षण नहीं मिल सकता।
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