सबिता नाम की 96 साल की महिला ने बताया कि वो उम्र की वजह से वो चल नहीं सकतीं, उन्हें अपने बिस्तर से भी उठने में बहुत ज्यादा तकलीफों का सामना करना पड़ता है। एक दिन जब सुबह सोकर उठीं तो उन्होंने पाया कि घर में कोई मौजूद नहीं था। उनका बेटा, अपनी बीवी और बच्चों को लेकर अंडमान जा चुका है। चल पाने में असमर्थ होने के कारण वो अपने बेटे से सम्पर्क भी नहीं कर पाई।
उन्होंने आगे बताया कि उनके पास खाने के लिए थोड़े से बिस्कुट के और कुछ भी नहीं था। उन्होंने पड़ोसियों को आवाज देकर खाना मांगा लेकिन जब पडोसी खाना लेकर उनके घर पहुंचे तो पाया कि दरवाजा बाहर से लॉक था। इसलिए उनके पड़ोसियों ने दीवार के ऊपर से खाना फेंक कर दिया। मुस्किल से उन्होंने पड़ोसियों की मदद से एक दिन निकाला।
बेटियों ने की मदद:
जैसे तैसे एक दिन निकलने के बाद अगले दिन दोपहर में उनकी बेटियां जब उनसे मिलने आईं तब उन्हें पड़ोसियों ने पूरे मामले से अवगत कराया। बेटियों ने पाया कि उनकी मां घर में अकेली बंद हैं। उनकी बेटियों ने दरवाजे पर लगा ताला तोडा और देखा कि उनकी मां नीचे जमीन पर गिरी हुई थीं। हालांकि सबीता देवी को उनकी बेटियों ने बचा लिया। तब मां ने अपने बेटे के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई है।
जैसे तैसे एक दिन निकलने के बाद अगले दिन दोपहर में उनकी बेटियां जब उनसे मिलने आईं तब उन्हें पड़ोसियों ने पूरे मामले से अवगत कराया। बेटियों ने पाया कि उनकी मां घर में अकेली बंद हैं। उनकी बेटियों ने दरवाजे पर लगा ताला तोडा और देखा कि उनकी मां नीचे जमीन पर गिरी हुई थीं। हालांकि सबीता देवी को उनकी बेटियों ने बचा लिया। तब मां ने अपने बेटे के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई है।
वैसे देखा जाए तो बुजुर्गों के प्रति बढती असंवेदना के लिए सिर्फ देश के बड़े महानगर ही जिम्मेदार नहीं हैं। अब तो यह प्रवृति छोटे शहरों में भी दिखाई देने लगी है। लिहाज़ा अब अकेले कानून से कुछ नहीं होगा। हमारी नई पीढ़ी को बचपन से ही बुजुर्गो के प्रति संवेदनशील बनाए जाने की जरूरत है। साथ ही बुजुर्गो को आर्थिक रूप से सबल बनाने के विकल्पों पर भी ध्यान देना होगा।