बच्चे की मौत हो चुकी थी, शाम ढलने के बाद मां-बाप बच्चे के शव को लेकर वहां पहुंचे थे जहाँ वो अपने लाडले के साथ दिन के चार पहर गुजारा करते थे। शाम ढल जाने के कारण अंतिम संस्कार भी मुमकिन न था। मां-बाप बेटे के शव को घर लेकर आए। जैसे ही वे दरवाजे पर पहुंचे मकान मालिक आ धमका।
इंसानियत के रहनुमा कहे जाने वाले इंसान की इंसानियत देखिये, एक मकान मालिक ने जोकि ”शायद इंसान” ही था परिवार को बेटे के शव के साथ घर के अंदर नहीं आने दिया। मकान मालिक का तर्क था कि तीन महीने पहले ही उसकी बेटी की शादी हुई है। अगर कोई लाश घर के अंदर आएगी तो अशुभ होगा।
बच्चे के शव को कंधे पर लिए पिता ने जब मकान मालिक से घर के कम्पाउंड में बैठने की इजाजत मांगी तो इस मकान मालिक ने तो उन्हें कम्पाउंड से भी बाहर कर दिया। दरअसल उस शाम शहर में तेज बारिश हो रही थी। ऐसे में शव के साथ बाहर बैठना कहीं से भी जायज न था।
बच्चे के शव को कंधे पर लिए पिता ने जब मकान मालिक से घर के कम्पाउंड में बैठने की इजाजत मांगी तो इस मकान मालिक ने तो उन्हें कम्पाउंड से भी बाहर कर दिया। दरअसल उस शाम शहर में तेज बारिश हो रही थी। ऐसे में शव के साथ बाहर बैठना कहीं से भी जायज न था।
ऐसे में एक पिता पर क्या गुजर रही होगी जिसके हाथ में बेटे की लाश, दूसरी ओर लोगों की बेरुखी थी। बाकी की कसर ये बारिश पूरी कर रही थी। उस वक्त बारिश में एक परिवार ही नहीं, बल्कि मानवीय संवेदनाएं भीग रही थीं और भीग रही थी इंसानों की इंसानियत जो वक्त पड़ने पर अपनी दुम छुपा लेती है। बीमारी बेटे की जान ले चुकी थी और बीमार सोच ने इंसानियत का गला घोंट दिया था।
हालांकि वहीँ कहीं से बची हुई इंसानियत को शर्म आई तो आस-पड़ोस के लोगों ने इस परिवार की मदद की। उन्होंने शव को रातभर बारिश से बचाने के लिए ताबूत का बंदोबस्त किया। एक त्रिपोल के सहारे अपने 13 साल के बच्चे के शव के साथ परिवार ने रात बिताई। सुबह 8 बजते ही बच्चे का अंतिम संस्कार कर दिया गया।