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महिलाओं की बड़ी कामयाबी, रेलवे का 186 किलोमीटर ट्रैक सुपुर्द

locationइंदौरPublished: Mar 08, 2020 01:12:36 am

Submitted by:

Hari Om Panjwani

तीन साल पुरानी बात है। रतलाम रेलवे मंडल में एक मालगाड़ी चल रही थी। मालगाड़ी वैसे तो सामान्य की तरह ही थी, लेकिन एक पहलू में यह अन्य से अलग प्रतीत हो रही थी। मालगाड़ी के इंजन का कंट्रोल पैनल दो नाजुक लेकिन पूरी तरह नियंत्रित हाथों में था। ये हाथ थे 34 साल की संध्या यादव के, जो उस दिन रतलाम रेलवे मंडल की पहली लोकोमेटिव चालक बनी थी। उनकी सहायक चालक भी महिला ही थीं मंजेश पाल नाम की महिला। आज तीन साल बाद अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस से ठीक पहले मध्यप्रदेश में फिर वही किस्सा दोहराया गया है।

all women show (driver, assitant driver and guard with officers) at ratlam,woman guard in goods train at ratlam junction

रतलाम मंडल में मालगाड़ी का पूरी तरह संचालन करने वाली महिलाएं अपने अधिकारियों के साथ,रतलाम मंडल में मालगाड़ी में गार्ड की भूमिका निभा रही महिला।

प्रसंगवश. इंदौर. तीन साल पुरानी बात है। रतलाम रेलवे मंडल में एक मालगाड़ी चल रही थी। मालगाड़ी वैसे तो सामान्य की तरह ही थी, लेकिन एक पहलू में यह अन्य से अलग प्रतीत हो रही थी। मालगाड़ी के इंजन का कंट्रोल पैनल दो नाजुक लेकिन पूरी तरह नियंत्रित हाथों में था। ये हाथ थे 34 साल की संध्या यादव के, जो उस दिन रतलाम रेलवे मंडल की पहली लोकोमेटिव चालक बनी थी। उनकी सहायक चालक भी महिला ही थीं मंजेश पाल नाम की महिला। आज तीन साल बाद अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस से ठीक पहले मध्यप्रदेश में फिर वही किस्सा दोहराया गया है। पहले वाले किस्से से ज्यादा रोमांचक और गहरा। इसलिए कि इसमें चालक बीना मुरलीधरन और सहायक चालक पूजा जैसे दो किरदार तो पहले जैसे थे।
अलग और ज्यादा कुछ था तो वह यह कि इस बार मालगाड़ी की गार्ड भी महिला (दीपिका बैरागी) थी। यह यह सब सबसे ज्यादा राजस्व जुटाने वाले रतलाम रेलवे मंडल में ही हो रहा था। और ऐसा होने का यह पहला अवसर था, जब इस डिवीजन से गई किसी गाड़ी की पूरी की पूरी कमान महिलाओं के हाथ में रही। रतलाम से गोधरा तक करीब १८६ किमी के रेलवे ट्रैक पर महिलाओं ने खुद ४८ वैगन वाली मालगाड़ी न सिर्फ सफलतापूर्वक चलाई, बल्कि एक नया इतिहास भी रच दिया।
मंडल में इसके पहले कभी भी एक पूरी मालगाड़ी पर लोको और सहायक लोको पायलट के साथ महिला गार्ड नहीं रहती थीं, लेकिन रेलवे ने महिला शक्ति को पहचाना और भरोसा जताया तो परिणाम बेहद उत्साजनक सामने आए। रेलवे के इस नवाचार से यह भी साबित हो गया कि महिलाएं आज हर उस कार्य के लिए अपेक्षा के अनुसार परिणाम देने वाली बन गई हैं, जिसे पहले पुरुषों के लिए माना जाता था।
मालगाड़ी का संचालन इस मायने में भी अहम है, क्योंकि इसे यात्री गाड़ी की तरह निर्बाध ट्रैक नहीं मिलता। कई मर्तबा जंगल वाले इलाकों में मालगाड़ी को पटरी पर ही रोककर यात्री गाड़ी को पहले गुजारा जाता है। रात के समय असुरक्षा के हालात तो रहते हैं, साथ ही तत्काल सहायता के विकल्प भी कम ही होते है। ऐसे में ये महिलाएं जोश और उत्साह के साथ अगर रतलाम से गोधरा के आंचलिक ट्रैक पर सरपट गाड़ी दौड़ाते हुए समूची महिला जाति के हौसलों को पंख लगा दें तो यह कहा जा सकता है कि अब संकोच नहीं, ऊंची सोच का वक्त आ गया है।
इस नवाचार के लिए रेलवे के थिंक टैंक को भी दाद मिलनी चाहिए, क्योंकि सबसे पहले तो महिलाओं की काबलियत पर उसी ने भरोसा किया। अब इसका साकार रूप अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा की तरह उभरेगा। मालवा के जिलों में महिलाएं नवाचार के बजाय अपने लंबे घूंघट के चलते ज्यादा पहचानी जाती हंै, लेकिन अब परंपरा और आधुनिक दौर के साथ कदमताल का नया रूप महिलाओं को संबल प्रदान करेगा। आने वाले वक्त में निश्चित ही इस तरह के इतिहास खुद को दोहराएंगे।
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