एक तरफ बुराई पर अच्छा की जीत का जश्न मनाया जा रहा था तो दूसरी इस जश्न को मातम में बदलने के लिए काल का रूप लेकर 100 की रफ्तार से रेल करीब आ रही थी। प्रत्यक्षदर्शी बलबीर ने बताया कि जैसे रेल घटना स्थल पर पहुंची…तो लोगों की चीख पुकार के बीच पटाखों का शोर भी थम गया। हर तरफ से बच्चे और बड़ों के चीखने-चिल्लाने की आवाजें कानों को चीरते हुए गुजर रही थीं। ट्रैक पर खड़े लोग ट्रेन के आते ही खिलौनों की तरह उड़ने लगे थे।
प्रत्यक्षदर्शी विक्रम ने बताया कि जब रावण को आग लगाई गई, तो पटाखों की बहुत तेज आवाज थी। उस वक्त ही ट्रेन आ गई और लोग रावण को देख रहे थे और ट्रेन ने ट्रैक पर जितने भी लोग थे उन्हें कुचल दिया। साथ ही जो लोग ट्रेन से भिड़ने से बच गए वो पत्थरों पर गिर गए, जिससे उनको चोट लगी है। उस वक्त हम बिल्डिंग में खड़े थे, उपर से जब देखा तो नीचे सिर्फ चारों तरफ लाशें ही लाशें दिख रही थीं।
एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि मैं रावण दहन देख रहा था अचानक लोगों के चीखने की आवजें सुनाईं दीं…जब तक मैं कुछ समझ पाता ट्रेन से कटकर एक लाश मुझे आ टकराई जिसकी वजह से वो मैं गिर पड़ा। तब जाकर समझ आया है कि कई लोग ट्रेन की चपेट में आ चुके हैं। ऐसा खौफनाक मंजर मैंने पहले कभी नहीं देखा। अब तक इस हादसे को जहने से मिटा नहीं पा रहा हूं। आंख बंद करता हूं लाशें दिखती हैं, कानों में चीखने की आवाजें आती रहती हैं।