एजी केके वेणुगोपाल ने जम्मू-कश्मीर का उदाहरण देते हुए कहा कहा कि भारतीय राज्यों के एकीकरण का मकसद देश की अखंडता बनाए रखना है। वहीं, अटार्नी जनरल ने वीपी मेनन की किताब का हवाला दिया जिसमें पाकिस्तान और महराजा हरि सिंह और पाकिस्तान के बीच फूट का वर्णन किया गया है।
अनुच्छेद 37०ः मोदी सरकार का सुप्रीम कोर्ट को दो टूक जवाब, फैसला वापस लेना मुमकिन नहीं उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और महराजा के बीच हुए करार का उल्लंघन हुआ। पाक द्वारा प्रशिक्षित जनजातियों को ट्रकों में भर कर लड़ाई करने भेजा गया और राज्य को कब्जे में लेने का प्रयास किया गया। जिस कारण हरि सिंह ने जम्मू एवं कश्मीर का भारत में विलय करने का निर्णय लिया।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से एजी ने अपनी दलीलों के समर्थन में अदालत को पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट सौंपनी चाहीं लेकिन याचिकाकर्ताओं के वकील राजीव धवन ने इसे राजनीतिक दलील कहते हुए इसका विरोध किया। इस पर जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाने को चुनौती देने वाली जम्मू-कश्मीर बार एसोसिएशन के वकील जफर अहमद शाह की अधिकतर दलीलें भी राजनीतिक थीं।
कांग्रेस के पूर्व MLA आसिफ खान समेत 2 नेताओं को नोटिस जारी, DPCB करेगी जामिया हिंसा मामले ये जो कुछ भी कह रहे हैं उसका मामले से कोई संबंध नहीं है। अदालत में जम्मू-कश्मीर के अलगाव का समर्थन करने वाली किसी दलील की इजाजत नहीं दी जा सकती। हम गलत को सही करने की कोशिश कर रहे हैं।
वेणुगोपाल के इस दलील पर विरोधी पक्ष के वकील धवन ने कहा कि पहली बार संविधान के अनुच्छेद 3 का इस्तेमाल करते हुए एक राज्य का दर्जा घटाकर उसे केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया। अगर केंद्र एक राज्य के लिए इसका इस्तेमाल कर सकता है तो केंद्र किसी भी राज्य के लिए ऐसा कर सकता है।
Nirbhaya Gangrape case: दोषियों का नया पैंतरा, SC में सुधार का हवाला देकर डालेंगे क्यूरेटिव वहीं बार की ओर से पेश वकील जफर अहमद शाह ने 1959 के प्रेमनाथ कौल बनाम जम्मू-कश्मीर सरकार और 1970 के संपत प्रकाश बनाम जम्मू-कश्मीर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र किया। उन्होंने कहा, प्रेमनाथ मामले में दिया गया फैसला 25 अक्तूबर, 1947 में दिए गए फैसले से अलग है। इसलिए मामले की सुनवाई पांच सदस्यीय पीठ नहीं कर सकती।
इसके जवाब में वेणुगोपाल ने अटॉर्नी जनरल ने कहा कि प्रेमनाथ मामला 370 से जुड़ा नहीं। संपत प्रकाश मामला भी अनुच्छेद 370 कुछ ही प्रावधानों से जुड़ा था। इसलिए मामले को बड़ी बेंच को सौंपने की जरूरत नहीं है। उन्होंने 2017 में संतोष गुप्ता मामले में दिए उस फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि जम्मू-कश्मीर की संप्रभुता भारत के संविधान के बाहर नहीं है और जम्मू-कश्मीर का संविधान भी कहता था वह भारतीय संविधान के अधीन है।