17 मई को हुई थी मामले पर सुनवाई बता दें कि इससे पहले 17 मई को इस मामले पर सुनवाई हुई थी और अगली सुनवाई 6 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी गई थी।
मुस्लिम पक्षकारों ने पेश की थी अपनी दलीलें गौरतलब है कि 17 मई को मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और एसए नजीर की पीठ ने इस पर सुनवाई की थी, जिसमें मुस्लिम पक्षकारों ने अपनी दलीलें पेश की थी और कहा कि 1994 के इस्माइल फारूकी फैसले में कहा गया है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है और इसे दोबारा परीक्षण के लिए संवैधानिक पीठ को भेजा जाना चाहिए।
नहीं भेजा जाना चाहिए संवैधानिक पीठ में.. लेकिन इस पर हिंदू पक्ष ने कहा कि वह मुद्दा जमीन अधिग्रहण के संबंध में था और मौजूदा मामला टाइटल विवाद का है। इस लिहाज से उस फैसले का इस मामले से कोई लेना देना नहीं है। इसलिए इस मामले को संवैधानिक पीठ में नहीं भेजा जाना चाहिए।
उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट ने 2010 में दिया था ये आदेश गौरतलब है कि 2010 में उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ में हाई कोर्ट के इसी फैसले के खिलाफ दायर 14 याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है।
डॉ. रामविलास दास वेदांती : 2019 से पहले ही होगी राम मंदिर निर्माण की शुरूआत हिन्दू परिषद के कार्याध्यक्ष आलोक कुमार का बयान वहीं विश्व हिन्दू परिषद के कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने भी मामले पर अपना बयान दिया और उम्मीद जताई है कि इस साल के आखिर तक या सितंबर तक इस मामले पर आखिरी निर्णय आ सकता है और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो सकता है।