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अयोध्याः सन 1885 में पहली बार अदालत पहुंचा मामला, राम चबूतरे पर मंदिर निर्माण की मांगी इजाजत

locationनई दिल्लीPublished: Nov 08, 2019 08:28:06 pm

राम जन्मभूमि पर विवाद है काफी पुराना।
1885 में अदालत ने खारिज कर दिया था केस।
महंत रघुबरदास ने दायर किया था मुकदमा।

अयोध्या (प्रतीकात्मक तस्वीर)

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नई दिल्ली। सदियों से विवाद का विषय रहे राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर जल्द ही सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना सकता है। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन न्यायमूर्ति वाली बेंच द्वारा वर्ष 2010 में सुनाए गए फैसले के खिलाफ की गई अपील को लेकर पहुंचा। हालांकि सन 1885 में राम चबूतरा क्षेत्र में पहली बार मंदिर बनाने की इजाजत मांगे जाने का मुकदमा दर्ज हुआ था।
यह है मामला

सन 1885 में महंत रघुबर दास ने राम चबूतरा क्षेत्र में एक मंदिर बनाने के लिए मुकदमा दायर किया था। उस वक्त बाबरी मस्जिद के मुतावली होने का दावा करने वाले मोहम्मद अशगर ने इस मुकदमे का विरोध किया।
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उन्होंने कुछ इंच तक भूमि के सीमांकन में आपत्ति दर्ज की थी, लेकिन उन्होंने पर्याप्त आपत्तियां नहीं उठाईं। इसके बाद मुकदमा खारिज कर दिया गया। अदालत का मानना था कि मंदिर बनाने की अनुमति देने से दो समुदायों के बीच दंगे भड़क सकते हैं।
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IMAGE CREDIT: ayodhya
राम लला की ओर से यह दलील दी गई कि 1885 के मुकदमे को पूर्व निर्णीत के रूप में संचालित किया गया- यानी कानूनन एक निर्धारित बिंदु जिसके बारे में फिर से निर्णय नहीं दिया जा सकता है।
वर्ष 2010 का फैसला

इसके बाद सन 2010 में न्यायमूर्ति खान ने आदेश दिया कि आदेश अनिवार्य रूप से एक यथास्थिति आदेश था और किसी भी कानूनी मुद्दों पर निर्णय नहीं लिया गया था, और इसलिए मुस्लिम पक्ष को बाध्य नहीं कर सकता।
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वहीं, जस्टिस शर्मा ने कहा था कि चूंकि महंत और मुतावली को विवाद में रुचि रखने वाले सभी पक्षों की ओर से मुकदमा लड़ने वाला नहीं कहा जा सकता है, इसलिए यह पार्टियों के लिए बाध्यकारी नहीं हो सकता है।
इसलिए जल्द आ सकता है फैसला

फिर इसके बाद से यह मामला सभी के सामने है और अब देश की सर्वोच्च अदालत इस पर कभी भी फैसला सुना सकती है। सुप्रीम कोर्ट आगामी 17 नवंबर को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई के सेवानिवृत्त होने से पहले दशकों से विवाद का केंद्र बने इस मामले का फैसला सुना सकता है।
क्या कहा था हाईकोर्ट ने

बता दें कि सन 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा फैसला सुनाने वाली बेंच में न्यायमूर्ति एसयू खान, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति धरम वीर शर्मा शामिल थे। इन्होंने कहा था कि भगवान रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास संयुक्त रूप से अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि पर बिना किसी उचित शीर्षक के कब्जा था, इसलिए इसके तीन हिस्से करने का फैसला दिया था।
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