सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जो मूल बात कही वह है कि मुस्लिम पक्ष यानी सुन्नी वक्फ बोर्ड अपना दावा साबित करने में नाकाम रहा है। लिहाजा विवादित भूमि को हिन्दू पक्षकार यानी राम जन्मभूमि न्यास को सौंप दिया गया। हालांकि कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को भी पांच एकड़ भूमि अयोध्या के किसी भाग में देने के आदेश दिए हैं।
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40 दिनों तक चली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हर पहलू और साक्ष्यों को सुना, देखा और फिर एक ऐतिहासिक फैसला दिया है। अब सवाल उठता है कि सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद के फैसले को क्यों खारिज कर दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला
बता दें कि 2010 के अपने फैसले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह पाया था कि विवादित स्थल हिंदू और मुस्लिम दोनों के संयुक्त कब्जे में था। लिहाजा कोर्ट ने विवादित स्थल को तीन भागों में विभाजन किया, जिसमें मुसलमानों, हिंदुओं और निर्मोही अखाड़ा को एक-एक तिहाई सौंपा गया।
न्यायमूर्ति एस यू खान ने सबूतों के आधार पर माना था कि विवादित स्थल को तीनों पक्षों के बीच समान रूप से वितरित किया जाना चाहिए। जबकि न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा था कि पूर्ण न्याय करने के लिए और मुकदमेबाजी की चक्कर से बचने के लिए वे विवादित भूमि के तीन हिस्सों में विभाजन पर सहमत हो गए थे।
इलाहाबाद कोर्ट को खारिज करने के ये हैं कारण
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 40 दिन तक लगातार अयोध्या विवाद मामले की सुनवाई की। इस दौरान तमाम सबूतों, गवाहों और साक्ष्यों पर गौर करते हुए सुनवाई पूरी की। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर भी विचार किया। जिसके बाद कुछ तथ्यों के आधार पर हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए नया ऐतिहासिक फैसला दिया है।
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– धर्म के आधार पर किसी भी व्यक्ति को उसके पूजा करने का अधिकार (Suit 1)
– निर्मोही अखाड़ा की ओर से मंदिर के प्रबंधन और प्रभार के लिए अधिकार प्रदान करने का दावा (Suit 3)
– सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और मुस्लिम की ओर से टाइटल पर एक घोषणात्मक मुकदमा (Suit 4)
– हिंदू देवताओं की तरफ से (behalf) एक मुकदमा जिसमें एक निषेधाज्ञा भी मांगी गई है, जिसमें एक मंदिर के निर्माण के किसी भी बाधा को रोकना (Suit 5)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से तीन विवादित भूमि को तीन हिस्सों में विभाजन कानूनी रूप से अस्थिर था।